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________________ ६६६] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [द्वाविंशाध्ययनम्. मूलार्य-इस प्रकार तत्त्ववेत्ता पंडित और विचक्षण लोग करते हैं तथा भोगों से निवृत्त हो जाते हैं, जिस प्रकार पुरुषोत्तम वह रथनेमि निवृत्त हुआ। टीका-प्रस्तुत अध्ययन की समाप्ति करते हुए शास्त्रकार कहते हैं कि जो तत्त्ववेत्ता और विशेष बुद्धि रखने वाले पंडित लोग हैं, वे इस प्रकार से आचरण करते हैं जैसे कि राजकुमार रथनेमि ने पतन की ओर जाते हुए अपने आत्मा को फिर से संयम में स्थापित कर लिया और भोगों से निवृत्त होकर तप के अनुष्ठान से केवल ज्ञान द्वारा परम दुर्लभ मोक्षपद को प्राप्त कर लिया । वास्तव में जो पुरुष भोगों से निवृत्त होकर दृढतापूर्वक संयममार्ग में प्रविष्ट होता हुआ अपने आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेता है वही संबुद्ध, पंडित और विचक्षुण अथ च पुरुषोत्तम है; यह इस गाथा का भावार्थ है। इसके अतिरिक्त 'त्ति बेमि' का अर्थ प्रथम कई वार आ चुका है; उसी के अनुसार यहाँ पर भी कर लेना। द्वाविशाध्ययन समाप्त। ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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