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________________ ६६८] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [द्वाविंशाध्ययनम् ___ इस प्रकार विचार करने के अनन्तर भगवान् ने अपने सारथि को कहा कि जाओ, इन तमाम जीवों को बन्धन से मुक्त कर दो। यह आज्ञा मिलते ही सारथि ने सभी जीवों को बन्धन से मुक्त कर दिया। इसके अनन्तर परम दयालु भगवान् ने क्या किया, अब इसी के विषय में कहते हैं सो कुण्डलाण जुयलं, सुत्तगं च महायसो । आभरणाणियसव्वाणि, सारहिस्स पणामई ॥२०॥ स कुण्डलयोयुगलं, सूत्रकं च महायशाः। आभरणानि च सर्वाणि, सारथये प्रणामयति ॥२०॥ पदार्थान्वयः-सो-वे नेमि भगवान् महायसो-महान् यश वाले कुण्डलाण-कुंडलों का जुयलं-युगल च-और सुत्तगं-कटिसूत्र को य-पुनः सव्वाणिसर्व आभरणाणि-भूषणों को सारहिस्स-सारथि के प्रति पणामई-देते हैं। ___ मूलार्थ-महान् यश वाले श्रीनेमिभगवान् दोनों कुंडल, कटिसूत्र तथा अन्य सब भूषण सारथि को अर्पण कर देते हैं। . टीका-भगवान् की आज्ञा के अनुसार जब सारथि ने उन सभी जीवों को बन्धन से मुक्त कर दिया, तब भगवान् ने उसको पारितोषिक (इनाम) के रूप में अपने दोनों कुंडल, कटिसूत्र तथा अन्य सब भूषण उतारकर दे दिये । जो आत्मा संसार से विरक्त हो जाते हैं अथवा सांसारिक विषयभोगों की अनर्थकारिता से भली भाँति परिचित होते हैं, उनका फिर किसी भी सांसारिक वस्तु पर मोह नहीं रहता। भगवान् नेमिनाथ तो पहले ही संसार से विरक्त थे । इस अनर्थकारी भावी हिंसाकांड से तो उन्हें और भी उपरति हो गई । अत: उन अनाथ प्राणियों को बन्धन से मुक्त कराकर वे स्वयं भी बन्धन से मुक्त होने के लिए उद्यत हो गये । इसी के उपलक्ष्य में उन्होंने अपने समस्त भूषण सारथि को दे डाले । उक्त कथन से प्रतीत होता है कि उस समय कुंडल और कटिसूत्र (तड़ागी) के पहरने का अधिक प्रचार था । इसी का अनुकरण वानप्रस्थों ने किया प्रतीत होता है, जो कि मेखलासूत्र के नाम से प्रसिद्ध है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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