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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् ६६४ ] [ द्वाविंशाध्ययनम् उन बँधे हुए भयभीत प्राणियों को देखा तो वे अपने हस्तिपक महावत से इस प्रकार कहने लगे। मांसलोलुपी पुरुषों का कथन है कि 'मांसेनैव मांसमुपचीयते' अर्थात् मांसभक्षण से ही मांस की वृद्धि अथच पुष्टि होती है तथा उस बारात में ऐसे पुरुष भी अधिक संख्या में उपस्थित थे; उन पुरुषों के निमित्त ही उक्त जानवरों का संग्रह किया गया था। इसी लिए वे भयभीत हो रहे थे और प्राणों की रक्षा के लिए मूकभाव से किसी रक्षक का आह्वान कर रहे थे। उसी समय पर परम दयालु अरिष्टनेमि कुमार की उन पर दृष्टि पड़ी और वे अपने सारथि से इस प्रकार बोले। क्योंकि वह मति, श्रुति और अवधि ज्ञान के धारक होने से महान् बुद्धिमान थे। यद्यपि सारथि शब्द रथ के चलाने वाले का वाचक है तथापि इस स्थान में उपचार से हस्तिपक-महावत का ही ग्रहण अभिप्रेत है । तात्पर्य यह है कि हस्ती पर आरूढ होने का स्पष्ट उल्लेख होने से प्रस्तुत गाथा में आये हुए सारथि शब्द का 'महावत' अर्थ करना ही प्रकरणसंगत और युक्तियुक्त प्रतीत होता है । अथवा कदाचित् कुछ दूर जाने पर वे रथ में सवार हो गये हों तो सारथि शब्द का रथवान् अर्थ करने में भी कोई आपत्ति प्रतीत नहीं होती। . उन्होंने सारथि से जो कुछ कहा, अब उसी विषय में कहते हैं कस्स अट्रा इमे पाणा, एए सव्वे सुहेसिणों। वाडेहिं पंजरेहिं च, संनिरुद्धाय अच्छहिं ॥१६॥ कस्यार्थमिमे प्राणिनः, एते सर्वे सुखैषिणः । । वाटकैः पञ्जरैश्च, सन्निरुद्धाश्च तिष्ठन्ति ॥१६॥ __पदार्थान्वयः-कस्स अट्रा-किसके लिए इमे-ये पाणा-प्राणी एए-ये सव्वेसब सुहेसिणो-सुख के चाहने वाले वाडेहिं-बाड़ों च-और पंजरेहिं-पिंजरों में संनिरुद्धा-रोके हुए अच्छहि-स्थित हैं य-पादपूर्ति में है। ___ मूलार्थ—ये सब सुख के चाहने वाले प्राणी किसलिए पिंजरों में डाले हुए और बाड़े में बंधे हुए हैं ? टीका-अरिष्टनेमि कुमार अपने सारथि से पूछते हैं कि ये मूक प्राणी किस . प्रयोजन के लिए यहाँ पर एकत्रित किये हैं ? तात्पर्य यह है कि इन स्वच्छन्द विचरने
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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