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________________ १२८] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकविंशाध्ययनम् थी। यहाँ पर 'स्वदेशं प्रस्थितः' स्वदेश के प्रति लौटा, इस कथन से श्रावकों की विदेशयात्रा और विदेशों में भी सजातीय लोगों का निवास, यह दो बातें भली भाँति प्रमाणित होती हैं। ___ जहाज के द्वारा स्वदेश को लौटते हुए रास्ते में क्या हुआ ? अब इसी का वर्णन करते हैं अह पालियस्स घरणी, समुदंमि पसवई। अह दारए तहिं जाए, समुद्दपालित्ति नामए ॥४॥ अथ पालितस्य गृहिणी, समुद्रे प्रसूते (स्म)। .. अथ दारकस्तस्मिाते, समुद्रपाल इति नामतः ॥४॥ पदार्थान्वयः-अह-अथ पालियस्स-पालित श्रावक की घरणी-गृहिणीघर वाली समुदंमि-समुद्र में पसवई-प्रसूत हो गई अह-तदनन्तर तहिं-वहाँ पर दारए-बालक जाए-उत्पन्न हुआ समुद्दपालि-समुद्रपाल त्ति-इस प्रकार नामएनाम से वह प्रसिद्ध हुआ। ___ मूलार्थ-तदनन्तर पालित के घर वाली को समुद्र में प्रसव हुआ और वहाँ उसका पुत्र उत्पन्न हुआ, जो कि 'समुद्रपाल' इस नाम से प्रसिद्ध हुआ। टीका-पालित नामा श्रावक जब जहाज के द्वारा समुद्र के रास्ते से अपने देश को लौटा तो समुद्र में अर्थात् जहाज पर ही उसकी स्त्री ने एक बालक को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने समुद्रपाल रक्खा । तात्पर्य यह है कि समुद्र में जन्म होने से माता-पिता के द्वारा उसका 'समुद्रपाल' यह गुणनिष्पन्न नाम हुआ । यद्यपि नामकरण में भावुकों की इच्छा प्रधान होती है तथापि गुणनिष्पन्न नामकरण में विशेष प्रतिष्ठा होती है । कई एक प्रतियों में 'दारए' पद के स्थान पर 'बालए' पद देखने में आता है और 'नामतः' के स्थान में 'नामकः' ऐसा प्रतिरूप है। ____ तदनन्तर क्या हुआ, अब इसी विषय में कहते हैंखेमेण आगए चंपं, सावए वाणिए घरं । संवडुई घरे तस्स, दारए से सुहोइए ॥५॥ .
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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