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________________ ८८०] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [विंशतितमाध्ययनम् कोसम्बी नाम नयरी, पुराणपुरभेयणी । तत्थ आसी पिया मझ, पभूयधणसंचओ ॥१८॥ कौशाम्बी नाम्नी नगरी, पुराणपुरभेदिनी । तत्रासीत् पिता मम, प्रभूतधनसञ्चयः ॥१८॥ पदार्थान्वयः-कोसम्बी-कौशाम्बी नाम-नाम वाली नयरी-नगरी जो पुराणपुरभेयणी-जीर्ण नगरियों को भेदन करने वाली तत्थ-उसमें मझ मेरा पिया-पिता पभूयधणसंचओ-प्रभूतधनसंचय नाम वाला आसी-रहता था। .. ___ मूलार्थ—कौशाम्बी नामा अति प्राचीन नगरी में प्रभूतधनसंचय नाम वाले मेरे पिता निवास करते थे। टीका-अनाथ शब्द के अर्थ और परमार्थ को समझाने के लिए उक्त मुनिराज अपनी पूर्वचर्चा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक कौशाम्बी नाम की अति प्राचीन नगरी है। उसमें मेरे प्रभूतधनसंचय नाम के पिता निवास करते थे। यहाँ पर कौशांबी का जो 'पुराणपुरभेदिनी' विशेषण है, उससे उक्त नगरी की अत्यन्त प्राचीनता और प्रधानता का वर्णन करना अभिप्रेत है। अधिक धन का संचय करने से उसका नाम भी 'प्रभूतधनसंचय' ही पड़ गया था। इसके अतिरिक्त कौशाम्बी की प्राचीनता और प्रधानता के वर्णन से यह भी ध्वनित होता है कि प्राचीन नगरियों के लोग प्रायः चतुर, धनाढ्य और विवेकशील होते हैं । क्योंकि उनकी सम्पत् कुलक्रम से आई हुई होती है। यदि साधारण पुरुषों को कभी सम्पदा की प्राप्ति भी हो जाय तो भी उनमें उक्त गुणों का उत्पन्न होना सन्देहयुक्त है अर्थात् उनमें ये गुण उत्पन्न हो भी सकते हैं और नहीं भी। परन्तु कुलीन पुरुषों के विषय में ऐसा नहीं । वहाँ तो उक्त गुणों का सहचार प्रायः रहता ही है। ___ फिर कहते हैंपढमे वए महाराय ! अउलामे अच्छिवेयणा । अहोत्था विउलोदाहो , सव्वगत्तेसु पत्थिवा ! ॥१९॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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