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________________ चतुर्दशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् [५६५ इस प्रकार अपने पिता के तीनों प्रश्नों का उत्तर देने के अनन्तर वे दोनों कुमार अब पिता के द्वारा दिये गये कामभोगादि पदार्थों के प्रलोभन की समीक्षा करते हुए उन विषय भोगों की असारता का प्रतिपादन करते हैं । यथाखणमित्तसुक्खा बहुकालदुक्खा, पगामदुक्खा अणिगामसुक्खा । संसारमोक्खस्स विपक्खभूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥१३॥ क्षणमात्रसौख्या बहुकालदुःखाः, प्रकामदुःखा अनिकामसौख्याः । संसारमोक्षस्य . विपक्षभूताः, खानिरनर्थानां तु कामभोगाः ॥१३॥ ___पदार्थान्वयः-खणमित्त-क्षत्रमात्र सुक्खा-सुख है बहुकाल-बहुत काल पर्यन्त दुक्खा-दुःख है पगाम-प्रकाम दुक्खा-दुःख है अणिगाम-बहुत ही थोड़ा सोक्खा-सुख है संसारमोक्खस्स-संसार के मोक्ष के विपक्खभूया-विपक्षभूत हैं उ-निश्चय ही कामभोगा-कामभोग अणत्थाण-अनर्थों की खाणी-खान हैं। __ मूलार्थ-क्षणमात्र सुख है, बहुत कालपर्यन्त दुःख है, प्रकामअत्यधिक दुःख है, बहुत ही थोड़ा सुख है । ये कामभोग संसार-मोक्ष के प्रतिकूल और निश्चय ही सारे अनर्थों की खान हैं । . टीका-वे दोनों कुमार पिता की ओर से दिए जाने वाले प्रलोभनों के विषय में कहते हैं कि-पिता जी ! इन कामभोगों के सेवन में क्षणमात्र तो सुख है परन्तु नरकादि में उनका फलस्वरूप दुःख तो बहुत काल पर्यन्त भोगना पड़ता है तथा शारीरिक और मानसिक दुःखों का भी अधिक रूप से अनुभव करना पड़ता है । तथा काम भोगों के सेवन से उपलब्ध होने वाला सुख तो बहुत ही स्वल्पकाल स्थायी है परन्तु दुःख चिरकाल तक रहता है । तात्पर्य
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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