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________________ ८३२ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकोनविंशाध्ययनम् चपेटामुष्टयादिभिः , कुमारैरय इव । ताडितः कुहितो भिन्नः, चूर्णितश्चानन्तशः ॥६॥ ____ पदार्थान्वयः-चवेड-चपेड़ और मुट्ठिमाईहिं-मुष्टि आदि से कुमारेहिलोहकारों से अयं पिव-लोहे की तरह ताडिओ-ताड़ा गया कुट्टिओ-कूटा गया भिन्नो-भेदन किया गया य-और चुण्णिओ-चूर्ण किया गया अणंतसो-अनेक वार। मूलार्थ हे पितरो ! जैसे लोहकार लोहे को कूटते हैं, पीटते हैं और चूर्णित करते हैं; उसी प्रकार चपेड़ और मुष्टि आदि से मुझे भी अनेक वार ताड़ा गया, पीटा गया, भिन्न २ किया गया और चूर्णित किया गया। '' टीका-मृगापुत्र कहते हैं कि जिस प्रकार से लोहार लोहे को कूटते हैं, उसी प्रकार नरकों में यम पुरुषों ने मुझे भी चपेड़ों और मुट्ठियों से खूब मारा और पीटा । यहाँ तक कि मार-मारकर मेरे शरीर का चूर्ण बना दिया । तात्पर्य यह है कि जैसे लोहार लोग लोहे के साथ बड़ी निर्दयता का व्यवहार करते हैं, ठीक उसी प्रकार उन यम-दूतों ने मेरे साथ बर्ताव किया । इस गाथा में भी अर्थतः स्फोटक आदि 'कर्मादान के फल का वर्णन है, जो कि विचारशील को कर्मबन्ध का कारण होने से त्याज्य है। तथा त्रस्त जीवों के साथ अन्याय और अत्याचार करने का भी यही फल वर्णित है । अतः बुद्धिमान् पुरुष को सदा अन्याय और अत्याचार से बचे रहने का प्रयत्न करना चाहिए। ____ अब फिर कहते हैंतत्ताई तम्बलोहाई, तउयाइं सीसगाणि य । पाइओ कलकलंताई, आरसंतो सुभेरवं ॥६९॥ तप्तानि ताम्रलोहादीनि, त्रपुकानि सीसकानि च । पायितः कलकलायमानानि, आरसन् सुभैरवम् ॥६९॥ पदार्थान्वयः-तत्ताई-तप्त तम्ब-ताम्र लोहाइ-लोह को तउयाई-त्रपुलाख य-और सीसगाणि-सीसे को पाइओ-पिला दिया कलकलंताई-कलकल शब्द करते हुए तथा सुभेरवं-अति भयानक आरसंतो-शब्द करते हुए को।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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