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________________ एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [८१६ महाजतेसु उच्छ्वा , आरसंतो सुभेरवं । पीलिओमि सकम्महिं, पावकम्मो अणन्तसो ॥५४॥ महायंत्रेष्विक्षुरिव , आरसन् सुभैरवम् । पीडितोऽस्मि स्वकर्मभिः, पापकर्माऽनन्तशः ॥५४॥ पदार्थान्वयः-महाजंतेसु-महायंत्रों में उच्छ्रवा-इक्षु की तरह आरसंतोआक्रंदन करते हुए सुभेरवं-अतिरौद्र शब्द करते हुए पीलिओमि-मैं पीला गयापीड़ित किया गया सकम्मेहि-अपने किये हुए कर्मों के प्रभाव से पावकम्मो-पाप कर्म वाला अणन्तसो-अनन्त वार । ____ मूलार्थ-पाप कर्म वाला मैं अति भयानक शब्द करता हुआ अपने किये हुए कर्मों के प्रभाव से इक्षु की तरह महायंत्रों में अनन्त वार पीला गया। टीका-इस गाथा में नारकी जीवों का कोल्हू आदि यंत्रों में पीडित किये जाने का वर्णन है। मृगापुत्र अपने माता-पिता से कहते हैं कि मैं स्वोपार्जित पापकर्मों के प्रभाव से नरकों में जाकर इक्षु की तरह कोल्हू आदि यंत्रों में पीडित किया गया। वहाँ पर मेरे अतिरौद्र आक्रन्दन को भी किसी ने नहीं सुना । तात्पर्य यह है कि मैंने नरकों की अनेकविध रोमांचकारी यंत्रणाओं को स्वकृत पापकर्मों के फलस्वरूप अनन्त वार सहन किया । यहाँ पर पापकर्मों के आचरण से नरकगति में उत्पन्न होने का उल्लेख किया है, जो कि यथार्थ है। क्योंकि महारम्भ, महापरिग्रह, मांसभक्षण और पंचेन्द्रिय जीवों का वध इत्यादि पापकर्मों के द्वारा जीव नरकगति में उत्पन्न होते हैं; यह शास्त्र का सिद्धान्त है। सो इन्हीं कर्मों के प्रभाव से मुझे नरकों की असह्य वेदनाएँ सहन करनी पड़ी । इस कथन से शास्त्रकारों का यह आशय है कि विचारशील पुरुष को अशुभ कर्मों के आचरण से सदा निवृत्त रहना और शुभ कर्मों के अनुष्ठान में प्रवृत्त रहना चाहिए, जिससे कि उसे नरकों की उक्त भयंकर पीडाओं से दुःखी न होना पड़े। यहाँ पर 'वा' शब्द 'इव' अर्थ में गृहीत है। . अब फिर इसी विषय का प्रतिपादन करते हैं
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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