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________________ ८१४ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकोनविंशाध्ययनम् लोग, वैक्रिय अग्नि के द्वारा नारकियों को महान् कष्ट देते हैं। मनुष्य-लोक में बहुत से जीव, उष्ण स्पर्श से विशेष दुःख का अनुभव करते हैं। इसलिए नरकों में प्रथम उष्णता के ही दुःख का दिग्दर्शन कराया गया है । अब उष्णता के प्रतिपक्षी शीतस्पर्शजन्य दुःख का वर्णन करते हुए सूत्रकार कहते हैं जहा इहं इमं सीयं, इत्तोऽणन्तगुणो तहिं । । नरएसु वेयणा सीया, अस्साया वेइया मए ॥४९॥ यथेदमिह शीतम्, इतोऽनन्तगुणं तत्र । नरकेषु वेदना शीता, असाता वेदिता मया ॥४९॥ ___ पदार्थान्वयः-जहा-जैसे इह-इस लोक में इमं-यह प्रत्यक्ष सीयं-शीत है इत्तो-इससे अणंतगुणो-अनन्तगुणा शीत तहिं-वहाँ पर है नरएसु-नरकों में सीया-शीत की वेयणा-वेदना अस्साया-असातारूप वेइया-भोगी मए-मैंने । मूलार्थ-जैसे इस लोक में यह प्रत्यक्ष शीत पड़ रहा है, इससे अनन्त गुणा अधिक शीत वहाँ पर है । सो नरकों में इस प्रकार के शीत की वेदना मैंने अनन्त वार भोगी है। टीका-इस गाथा में शीत की वेदना का दिग्दर्शन कराया गया है। मृगापुत्र अपने माता-पिता से कहते हैं कि हे पितरो ! जैसे माध आदि मासों में हिमालय आदि पर्वतों पर शीत पड़ता है अर्थात्. बर्फ के पड़ने से शीत की अधिकता होती है, उस शीत से अनन्तगुणा शीत उन नरकों में है, जहाँ पर कि मैं कई वार उत्पन्न हुआ और उस शीत की वेदना को सहन किया । तथा नरक में शीत तो कल्पनातीत है परन्तु उसकी निवृत्ति का वहाँ पर कोई उपाय नहीं। इसलिए शीत की अत्यन्त असह्य वेदना को भोगना पड़ता है। यहाँ पर सूत्र में जो 'इदम्' शब्द का प्रयोग किया है, उससे प्रतीत होता है कि मृगापुत्र को शीतकाल में वैराग्य उत्पन्न हुआ होगा अथवा जिस समय इस विषय की वह अपने माता-पिता से चर्चा करते होंगे, उस समय शीत की अधिकता होगी, क्योंकि लिखा है कि-'इदमः प्रत्यक्षगतं
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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