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________________ ८०२] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकोनविंशाध्ययनम् wwwwwwwwne है अर्थात् स्नान, विलेपन, वस्त्र और आभूषणादि से सदा उपस्कृत रहता है। इसलिए संयमवृत्ति का पालन करना तेरे लिए बहुत कठिन है अर्थात् तू संयमवृत्ति का पालन नहीं कर सकता । इस गाथा में मृगापुत्र की सुखशीलता, सुकुमारता और अलंकृति का दिग्दर्शन कराने का तात्पर्य यह है कि संयमवृत्ति में आरूढ होने वाले पुरुष को इन तीनों ही अवस्थाओं का परित्याग करना पड़ता है। अथवा यों कहिए कि ये तीनों ही बातें संयम की विरोधी हैं। या इस प्रकार समझिए कि सुखशील, सुकुमार और.. अलंकृतिप्रिय मनुष्य संयम के योग्य नहीं होता अर्थात् जब तक उसकी वृत्ति इनमें लगी हुई है, तब तक वह संयम के योग्य नहीं हो सकता। अब फिर इसी विषय में कहते हैंजावजीवमविस्सामो, गुणाणं तु महब्भरो। गुरुओ लोहमारु व्व, जो पुत्ता! होइ दुव्वहो ॥३६॥ यावज्जीवमविश्रामः , गुणानां तु. महाभरः । गुरुको लोहभार इव, यः पुत्र ! भवति दुर्वहः ॥३६॥ ____ पदार्थान्वयः-जावजीवम्-जीवनपर्यन्त अविस्सामो-विश्रामरहित होना गुणाणं-गुणों का महब्भरो-बड़ा समूह है तु-पादपूरण में गुरुओ-भारी लोहमारुलोहभार की व्व-तरह जो-जो पुत्ता-हे पुत्र ! दुव्वहो-उठाना दुष्कर होइ-होता है। . मूलार्थ हे पुत्र ! जीवनपर्यन्त इस वृत्ति में कोई विश्राम नहीं है तथा लोहमार की तरह गुणों के महान् समूह को उठाना दुष्कर है। टीका-हे पुत्र ! साधुवृत्ति को ग्रहण करके जीवनपर्यन्त इसमें कोई विश्राम नहीं तथा सहस्रों गुणों के समूह को लोहभार की भाँति उठाना अत्यन्त कठिन है। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार अल्पसत्त्व वाले जीव गुरुतर भार को उठाने में समर्थ ..नहीं होते, उसी प्रकार साधुवृत्ति में धारण करने वाले गुणसमूह के भार को तेरे जैसा सुकुमारप्रकृति का बालक उठा नहीं सकता। सारांश यह है कि साधुवृत्ति में जिन गुणों की आवश्यकता है, उनका सम्पादन तेरे जैसे सुखशील और कोमलप्रकृति बालक के लिए अत्यन्त कठिन है। जिस प्रकार आकाश में घूमने वाले सूर्य और
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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