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________________ GET ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [एकोनविंशाध्ययनम् एवं धम्मं अकाऊणं, जो गच्छइ परं भवं । गच्छन्तो सो दुही होइ, वाहिरोगेहिं पीडिओ ॥२०॥ एवं धर्ममकृत्वा, यो गच्छति परं भवम् । गच्छन् स दुःखी भवति, व्याधिरोगैः पीडितः ॥२०॥ पदार्थान्वयः-एवं-इसी प्रकार धम्म-धर्म को अकाऊणं-न करके जोजो पुरुष गच्छइ-जाता है परं भवं-पर भव को सो-वह दुही-दुःखी होइ-होता है वाहि-व्याधि रोगेहिं-रोगों से पीडिओ-पीड़ित हुआ। मूलार्थ—इसी प्रकार धर्म का आचरण किये विना जो जीव परलोक में जाता है, वह जाता हुआ व्याधि और रोगादि से पीड़ित होने पर अत्यन्त दुःखी होता है। टीका-अब उक्त दृष्टान्त की दार्टान्त में योजना करते हैं । तात्पर्य यह है कि जैसे पाथेय के विना यात्री मार्ग में क्षुधा और तृष्णादि से व्यथित हुआ अत्यन्त कष्ट पाता है, उसी प्रकार धर्म का आचरण किये विना ही जो प्राणी परलोक की यात्रा में प्रवृत्त होते हैं, वे व्याधि और शारीरिक रोगों से पीड़ित हुए अत्यन्त दुःखी होते हैं। कारण यह है कि धर्म के प्रभाव से ही व्याधि और रोगों की निवृत्ति होती है । जब कि धर्म ही छूट गया अथवा धर्म का आचरण ही नहीं रहा तब व्याधि और रोगादि का निरन्तर आगमन हो, इसमें आश्चर्य ही क्या है । यहाँ पर व्याधि से शारीरिक व्यथा और रोग से मानसिक कष्ट का ग्रहण करना । यही अर्थ सूत्रकार को सम्मत है। अब इसी विषय का दूसरे रूप से वर्णन करते हैं । यथाअद्धाणं जो महंतं तु, सपाहेजो पवजई। गच्छन्तो सो सुही होइ, छुहातहाविवजिओ॥२१॥ अध्वानं यो महान्तं तु, सपाथेयः प्रव्रजति । गच्छन् स सुखी भवति, क्षुधातृष्णाविवर्जितः ॥२१॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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