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________________ ७६४ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [अष्टादशाध्ययनम् पदार्थान्वयः-तहेव-उसी प्रकार कासिरायावि-काशिराज भी सेओ-श्रेष्ठ सच्च-संयम में परक्कमो-पराक्रम करने वाला कामभोगे-कामभोगों को परिच्चजसर्व प्रकार से छोड़कर पहणे-हनता हुआ कम्ममहावणं-कर्मरूप महा बन को। . मूलार्थ—उसी प्रकार काशिराज भी पवित्र संयम में पराक्रम करता हुआ कामभोगों को त्यागकर कर्म रूप महा बन का विनाश करने वाला हुआ अर्थात् कर्मों का विनाश करके मोक्ष को प्राप्त हुआ। टीका-इस गाथा में नन्दन नाम के सातवें बलदेव का इतिहास वर्णन किया है। काशी नगरी में अग्निशिख नाम का एक राजा राज्य करता था। उसकी जयंती नाम की एक महाराणी थी। उसकी कुक्षि से नन्दन नामा सातवां बलदेव उत्पन्न हुआ । वह अपने छोटे भाई वासुदेव के साथ कितना एक समय राज्य का सुख भोग, और दक्षिणार्द्ध भारत का राज्य करके फिर दीक्षित हो गया। दीक्षा ग्रहण करने के अनन्तर उसने अति प्रचण्ड तप का अनुष्ठान करके कर्मरूप महा बन को जला डाला, जिसका परिणाम यह हुआ कि वह केवलज्ञान को प्राप्त करके मोक्षगति को प्राप्त हुआ। प्रस्तुत गाथा में इसी भाव को व्यक्त किया गया है । तात्पर्य यह है कि जो प्राणी, तप और संयम के अनुष्ठान में पराक्रम करते हैं, और कामभोगों से सर्वथा विमुख हो जाते हैं वही पवित्रात्मा कर्मरूप महा बन को जड़ से उखाड़ कर परे फैंकने में समर्थ होते हैं, जैसे कि नन्दन नामा सातवें बलदेव ने कर्मरूप महा बन का समूल घात करके मुक्ति को प्राप्त कर लिया। ___ अब दूसरे बलदेव के विषय में कहते हैं तहेव विजओ राया, अणटाकित्ति पव्वए। रजं तु गुणसमिद्धं, पयहित्तु महायसो ॥५०॥ तथैव विजयो राजा, आनष्टाकीर्तिःप्राबाजीत् । राज्यं . गुणसमृद्धं, प्रहाय महायशाः ॥५०॥ पदार्थान्वयः-तहेव-उसी प्रकार विजओराया-विजय राजा अणट्ठाकित्तिजिसकी अकीर्ति सर्व प्रकार से नष्ट हो चुकी है पन्चए-दीक्षित हो गया रज-राज्य
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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