SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१० ] : उत्तराध्ययनसूत्रम्- [सप्तदशाध्ययनम् :: प्रतिलेखयति प्रमत्तः, अपोज्झति पादकम्बलम् । प्रतिलेखनायामनायुक्तः, पापश्रमण इत्युच्यते ॥९॥ पदार्थान्वयः-पडिलेहेइ-प्रतिलेखना करता है पमत्त-प्रमत्त होकर अवउज्झइ-यत्र यत्र रख देता है पायकम्बलं-पात्र और कम्बल पडिलेहा-प्रतिलेखना में अणाउत्ते-अनुपयुक्त है पावसमणि त्ति-पापश्रमण बुचई-कहा जाता है। ___मूलार्थ-जो प्रमत्त होकर प्रतिलेखना करता है, पात्र और कम्बल जहाँ तहाँ रख देता है और प्रतिलेखना में अनुपयुक्त है, वह पापश्रमण कहा जाता है। टीका-जो साधु वसति आदि स्थानों को प्रमत्त होकर प्रत्युपेक्षण करता है, तथा पात्र कम्बलादि उपाधि को जहाँ तहाँ रख देता है अथवा जिसका भाण्डोपकरण विना ही प्रतिलेखना किये बिखरा हुआ पड़ा रहता है, इतना ही नहीं किन्तु जिसका प्रतिलेखना में बिलकुल ही उपयोग नहीं है, वह पापश्रमण है । क्योंकि उक्त क्रियाओं का यदि उपयोग और यत्नपूर्वक अनुष्ठान किया जायगा, तभी संयम की भली प्रकार से आराधना हो सकेगी अन्यथा उसका विघात होगा । उक्त गाथा में जो "पायकम्बलं" शब्द है, उसके दो अर्थ होते हैं—एक तो पात्र और कम्बल, दूसरा पाँव पोंछने का वस्त्रखण्ड । ये दोनों ही अर्थ यहाँ पर ग्राह्य हैं। अब फिर इसी विषय की आलोचना करते हैंपडिलेहेइ पमत्ते, से किंचि हु निसामिया। गुरुपरिभावए निच्चं, पावसमणि त्ति वुच्चई ॥१०॥ । प्रतिलेखयति प्रमत्तः, स किञ्चित्खलु निशम्य । गुरुपरिभावको नित्यं, पापश्रमण. इत्युच्यते ॥१०॥ ___ पदार्थान्वयः-पडिलेहेइ-प्रतिलेखना करता है पमत्ते-प्रमत्त होकर से-वह किंचि-किंचित् हु-भी निसामिया-सुनकर गुरुपरिभावए-गुरुजनों का परिभव करता है निचं-सदा ही पावसमणि ति-पापश्रमण इस प्रकार वुचई-कहा जाता है । मूलार्थ-जो प्रमत्त होकर प्रतिलेखना करता है और विकथादि के कारण किंचिन्मात्र भी गुरुजनों के रोकने पर सदैव उनका तिरस्कार करता है, वह पापश्रमण कहा जाता है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy