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________________ 12] [ जैन विद्या और विज्ञान , 4. चौथे खण्ड मे 'जैन गणित तथा कर्मवाद' पर चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। 5. पांचवें खण्ड में युग बोधकारी नव-सृजित साहित्य को स्थान दिया गया है जिसका नाम 'प्रेक्षा ध्यान और रोग निदान' रखा गया है। जो प्रेक्षा ध्यान, जीवन विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान से सम्बन्धित है। 6. छठे खण्ड में आचार्य महाप्रज्ञ और डॉ. कलाम के उन वक्तव्यों और वार्ताओं का संकलन किया गया है जिसमें आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व की बात कही गई है। अतः इस खण्ड का नाम 'आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व' रखा गया है। इस पुस्तक के पृष्ठों का अध्ययन करते समय यह प्रतीत होता जाएगा कि ऐसे धर्माचार्य विरल ही होते हैं, हजारो वर्षों में होते हैं जो परम्परा में चले आ रहे उलझे प्रश्नों का समाधान देते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने अनेक उलझे प्रश्नों का समाधान दिया है। इसका कारण यह है कि आचार्य महाप्रज्ञ ने वैज्ञानिक सोच तथा सापेक्ष दृष्टि को कभी भी ओझल नहीं होने दिया है। आभार मेरे दायित्व का निर्वाह करता हुआ मैं उन सभी को अन्तर्मन से व्यक्तिशः धन्यवाद देता हूं जिनके सहयोग के बिना यह प्रकाशन संभव नहीं हो सकता था। मैं अनुगृहीत हूं आचार्य महाप्रज्ञ का, जो वर्तमान में जैन विद्या के विश्वकोष (Encyclopaedia) सदृश ज्ञान के धनी हैं, ने इस पुस्तक को आशीर्वाद दिया है। मैं कृतज्ञ हूं शासनगौरव साध्वी राजीमतीजी का कि उन्होंने मेरे लेखन को आद्योपांत पढ़ा तथा इस पुस्तक का आमुख भी लिखा। साध्वीश्री योग साधिका के साथ जैन आगमों की मनीषी भी है। मैं अनुगृहीत हूं समणी मंगलप्रज्ञा जी का, कि उन्होंने अपने न्यूजर्सी, अमेरिका के प्रवास की व्यस्तता के बीच समय निकालकर पुस्तक का सम्पादन किया तथा सम्पादकीय लिखा। साध्वी राजीमतीजी तथा समणी मंगलप्रज्ञा जी के द्वारा सम्पादित होने से यह पुस्तक दर्शन और विज्ञान की साहित्य-दीर्घा में विशेष स्थान बनाएगी, जिसकी मुझे प्रसन्नता है। मैं इसे उनका उपकार मानता हूं। "प्रेक्षा ध्यान और रोग निदान (थैरेपी)' खण्ड के लेखन में डॉ. अरविंद जैन, जोधपुर का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। डॉ. जैन ने अपने स्तर पर प्रेक्षा ध्यान के चिकित्सकीय प्रयोग किए हैं, उन प्रयोगों को पुस्तक में स्थान दिया
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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