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________________ प्रेक्षाध्यान और रोग निदान ] [273 हैं। उसके पास इन कर्म-संस्कारों का असीम खजाना है। इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि बच्चा बिलकुल रिक्त है, कोरी पाटी के समान है। यह सापेक्ष सत्य है, पूर्ण सत्य नहीं। बच्चे में जो है, जो संस्कार-बीज वह साथ में लेकर आया हैं. वह भी उसके व्यक्तित्व का घटक बनता है, उसे प्रभावित करता है। वे संस्कार-बीज प्रकट होते हैं। सामाजिक संदर्भ, वातावरण उसमें निमित्त बनता है। आज के आनुवंशिकी वैज्ञानिक भी बतलाते हैं कि व्यक्ति के स्वभाव का निर्माण भीतर में होता हैं, जीवन के साथ होता है तथा यह भी माना जाता है कि आदमी का स्वभाव हार्मोन्स के द्वारा निर्धारित होता व्यक्तित्व का निर्माण शरीर के दो तत्त्व हैं - ग्रन्थि तंत्र और नाड़ी तंत्र। ये हमारे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित करते हैं। व्यक्तित्व के निर्माण में इनकी प्रमुख भूमिका रहती ग्रंथि तंत्र को व्यक्तित्व निर्माण से भिन्न नहीं माना जाता। जिस व्यक्ति का थायराइड ग्लेण्ड काम नहीं करता, जिसमें थायरोक्सिन की कमी होती है, वह व्यक्ति चिड़चिड़ा बन जाता है। उसकी चिन्तन और स्मृति की शक्ति कम हो जाएगी। थायरोक्सिन की मात्रा अधिक है तो तत्काल उत्तेजना आ जाएगी। बात-बात पर आवेश आ जाएगा। ऐसा होना व्यक्तित्व निर्माण में बाधा है, पर इसके पीछे जो कारक तत्त्व है, वह है ग्रंथि तंत्र। व्यक्तित्व निर्माण और .परिष्कार के लिए इसका ध्यान रखना आवश्यक है। दूसरा तत्त्व है नाड़ी तंत्र। हमारे प्राण तंत्र के तीन प्रवाह है। » इड़ा » पिंगला > सुषुम्मा आज की वैज्ञानिक भाषा में उन्हें सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम, पेरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम और सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम कहा है। एक व्यक्ति बहुत आक्रामक बन रहा है, एक बच्चा हर बात पर आक्रामक मुद्रा में आ जाता है, कहीं सिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम तो इसके लिए उत्तरदायी नहीं है। एक व्यक्ति हीन भावना से हमेशा ग्रस्त रहता है, प्रतिक्षण भयभीत और शंकाशील रहता है। यह जांच करानी जरूरी है कि कहीं पेरासिंपेथेटिक नर्वस सिस्टम ज्यादा सक्रिय तो नहीं हो गया है।
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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