SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ と 230] [ जैन विद्या और विज्ञान व्याख्याएं की हैं। उसके आधार पर सामान्य और असामान्य व्यवहार और आचरण को समझने में सुविधा हुई है। वैज्ञानिक जीन के परिवर्तन के सूत्र की खोज में लगे हुए हैं। जानवरों की नस्ल को सुधारने में वैज्ञानिकों को सफलता मिली है। आज वे मनुष्य की नस्ल को सुधारने के सूत्र की खोज कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त नाड़ी संस्थान और ग्रंथि तंत्र के स्रावों का परिवर्तन होने पर मनुष्य के व्यक्तित्व में परिवर्तन हो जाता है। अमेरिका में सर्वेक्षण से यह ज्ञात हुआ कि प्रदूषण के कारण नगरों की वायु में शीशे की मात्रा अधिक होती है और इसके प्रभाव से बच्चों की मनःस्थिति विकृत बन जाती है। अतः वैयक्तिक भिन्नता का कारण कर्म के अतिरिक्त पर्यावरण, आनुवंशिकता, परिस्थिति, नाड़ी संस्थान और ग्रंथितंत्र में होने वाले . परिवर्तन भी हैं । कर्म संक्रमण का सिद्धान्त 'जीन' सूक्ष्म जीवन तत्त्व है जो आनुवंशिक गुण-दोषों का संवाहक होता है । शरीर के रंग-रूप, आकार, बनावट आदि सभी सूचनाएं सांकेतिक रूप जीन में अंकित है। विज्ञान के क्षेत्र में अब यह सोचा जा रहा है कि 'जीन' को बदलने का सूत्र हस्तगत हो जाए तो पूरे व्यक्तित्व को बदला जा सकता है । अध्यात्म के क्षेत्र में, आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार भाव से, कर्म को बदला जा सकता है। कर्म संक्रमण का सिद्धान्त 'जीन' को बदलने का सिद्धान्त है । कर्म शास्त्र में यह भी माना गया है कि कर्मों का फल, द्रव्य तथा क्षेत्र पर निर्भर करता है। अतः व्यक्ति के जीवन में कर्म ही सब कुछ नहीं होते हैं बल्कि आनुवंशिकता, परिस्थिति, वातावरण, भौगोलिकता, पर्यावरण ये सब मनुष्य के स्वभाव एवं व्यवहार पर असर डालते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में यह संभावना बनी हुई है कि जीन को बदला जा सकेगा। अनुसंधानों से ज्ञात हुआ है कि वातावरण, जीन्स को बदलने में प्रभावी होते हैं । पुरुषार्थ के द्वारा कर्मों में परिवर्तन मानव जीनोम योजना पर दशकों से शोध कार्य हो रहा है। वैज्ञानिक आधार पर शरीर रचना का मूल कोशिका है। एक डिम्बाणु कोशिका से अनेक कोशिकाएं बन जाती हैं। निषेचित डिम्बाणु से संग्रहित असंख्य सूचनाओं का हस्तान्तरण ज्यों का त्यों सभी कोशिकाओं को कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया जीन के माध्यम से होती है। पहले वैज्ञानिकों ने बताया था कि जीन में प्रोटीन होता है जो शरीर की कोशिकाओं का निर्माण करता है और अब क्रेंग वेंटर के अनुसार 'हमारे व्यवहार, हमारी प्रवृतिओं के लिए, हमारे आस-पास का
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy