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________________ (xxi) बीसवीं शताब्दी से पूर्व दार्शनिक विषयों की समीक्षा विभिन्न दार्शनिक मान्यताओं के संदर्भ में ही की जाती थी। विज्ञान का पक्ष उस समय उपलब्ध या प्रबल नहीं था किंत जबसे विज्ञान ने विभिन्न दिशाओं में अपनी उपस्थिति प्रमाणित की है तबसे चिंतन एवं लेखन के क्षेत्र का भी विस्तार हुआ है। प्राचीन विद्या की संवादिता आधुनिक विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में उपस्थित कर प्राचीन विद्या के गाम्भीर्य को प्रतिष्ठित करने का उपक्रम विभिन्न लेखक कर रहे हैं। जैन विद्या के प्राचीन संदर्भो को आधुनिक विज्ञान के विषयों के साथ तुलना अथवा संवादिता स्थापित करने के प्रयत्नों में अग्रणी लेखकों की पंक्ति में आचार्य महाप्रज्ञ का नाम सर्वोपरि है। उन्होंने जैन विद्या को एक नया आयाम प्रदान किया है। .. आचार्य महाप्रज्ञ ने विज्ञान सम्बन्धी अपनी अवधारणा को प्रस्तुत करते हुए कहा है - "सत्य में कोई द्वैत नहीं होता। किसी भी माध्यम से सत्य की खोज करने वाला जब गहरे में उतरता है और सत्य का स्पर्श करता है तब मान्यताएं पीछे रह जाती हैं और सत्य उभरकर सामने आ जाता है। बहुत लोगों का एक स्वर है कि विज्ञान ने धर्म को हानि पहुंचाई है, जनता को धर्म से दूर किया है। बहुत सारे धर्मगुरु भी इसी भाषा में बोलते हैं, किंतु यह स्वर वास्तविकता से दूर प्रतीत होता है। मेरी निश्चित धारणा है कि विज्ञान ने धर्म की बहुत सत्यस्पर्शी व्याख्या की है और वह कर रहा है। जो सूक्ष्म रहस्य धार्मिक व्याख्या ग्रन्थों में अव्याख्यात है, जिनकी व्याख्या के स्रोत आज उपलब्ध नहीं हैं, उनकी व्याख्या वैज्ञानिक शोधों के संदर्भ में बहुत प्रामाणिकता के साथ की जा सकती है। दर्शन और विज्ञान की सम्बन्धित शाखाओं का तुलनात्मक अध्ययन बहुत अपेक्षित है। ऐसा होने पर दर्शन के अनेक नए आयाम उद्घाटित हो सकते हैं।" आचार्य महाप्रज्ञ की इस सर्वतोग्राही ग्रहणशील मनीषा ने आधुनिक युग के अनेक चिंतकों, लेखकों, साहित्यकारों, समाज सुधारकों, वैज्ञानिकों आदि को अपनी ओर आकृष्ट किया है। उनके यथार्थग्राही वैचारिक एवं क्रियान्विति के समन्वय ने युग को एक नया बोध/संबोध प्रदान किया है। ... आचार्य महाप्रज्ञ के लेखन के इस आयाम से आकृष्ट होकर ही प्रो. महावीर राज गेलड़ा ने प्रस्तुत ग्रन्थ “जैन विद्या और विज्ञान : संदर्भ : आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य" का प्रणयन किया है। ग्रन्थ-लेखन की आधारभूमि को प्रस्तुत करते हुए वे कहते हैं कि "-------- जैन दर्शन और विज्ञान तथा मनोविज्ञान पर आचार्य महाप्रज्ञ का लेखन अधिकारपूर्ण हुआ है तथा यह
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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