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________________ ६५० शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ए पूर्वोक्त, एकतालीश प्रकृतिनो एक समयश्री मांगीने अंतरमुहूर्त्त लगें निरंतर बंध होय, जे जणी ध्रुवबंधिनी वे ते माटें ते पढी अवश्य परावर्त्त थाय. मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, जिननामकर्म, वज्रषननाराचसंघयण ने चौदारि - कांगोपांग, ए पांच प्रकृतिनो निरंतरपणे बंध होय, तो उत्कृष्टथी तेत्रीश सागरोपम पर्यंत होय, जे जगी को अनुत्तर सुरने मनुष्य प्रायोग्य प्रकृतिनो बंध बे, तेथी ते सदा काल चोथे गुणगणे होय. ते जणी तेहने जव प्रथम समयथी मांगीने तेत्रीश सागरोपमना बेल्ला समय लगें एनी विरोधिनी नरकद्विक, तिर्यंच द्विक, देवद्विक, वैक्रियक, ने पांच अशुभ, संघयणादिकनो जव प्रत्ययेंज बंध न होय, तथा जिननामनी विरोधिनी प्रकृति कोइ नथी. तेथी ते पण सम्यक्प्रत्ययें करी, तेत्री सागरोपद्म लगें निरंतरपणे बंधाय. अहीं पण एक जिननाम विना शेष चार प्रकृतिनो जघन्य बंध समय मात्र बे. उपरांत परिणाम मेंदें विरोधिनी प्रकृति बांधे, ते अपेक्षायें लेवो. तथा पूर्वे चार युनो निरंतर बंध कह्यो बे, ते मतें चार आयुनो तथा जिननामनो जघन्यपदे पण अंतर मुहूर्त्तमात्र सतत बंध होय, पण ते उत्कृष्टनी अपेक्षायें तो जघन्य बंध मुहूर्त्त विशेष हीनपणे जाणवो. जे जणी अंतरमुहूर्त्तना असंख्याता नेद बे. माटे जिननामनो जघन्य सतत बंध श्रद्धायें उपशम श्रेणीथी पकतां श्रग्मा गुणठाणाने उपांत्य जागें तो जिननाम बंध करतो आठमुं, सातमुं गुणवाएं स्पर्शी वली श्रेणी चढतां श्राढमाने अंत्यजांगें जिननामनो अबंधक थाय, तेनी वचमांनो अंतर मुहूर्त्त बंधक होय. ए रीतें उत्कृष्ट तथा जघन्यथी मूलप्रकृति तथा उत्तरप्रकृतिनो स्थितिबंध ने ए स्थितिबंधना स्वामी तथा सादि अनायादिक चार नेद, चौद जीवने स्थितिस्थानकनुं पबहुत्व, योगस्थानकनुं अल्पबहुत्व, स्थितिबंधनुं जघन्य अने उत्कृष्ट तरुं तथा अध्रुवबंधिनी प्रकृतिना जघन्य उत्कृष्ट सततबंध कह्या . ॥६२॥ हवे अनुभाग एटले रसबंध कहेवानो अवसर बे, ते माटे तेनी व्याख्या करे बे. तिहां प्रथम अनुजागनुं स्वरूप कहे बे. तिहां सर्व जघन्य कर्म वर्गणाने विषे पण सर्व जीव अनंत गुणा परमाणु होय. वली एकेका परमाणुधोने विषे पण जघन्य पढ़ें सर्व जीवथी अनंत गुणा रसविजाग पलिछेद होय, जे रसनो जाग केवलीनी बुद्धिरूप शस्त्रें करी पण याय नहीं, एटले केवली पण जे रसनो विजाग कल्पी न शके, ते विजाग पीछेद एने जावाणु कहीयें. तिहां एक द्रव्य परमाणु सर्व जीव अनंत गुणा रसाविजागें 'युक्त तेना सरखाज जे बीजा परमाणु तेनो समुदाय ते समान जातिय माटें प्रथम एक वर्गणा कहीयें. ते थकी वली एक रसाविजागें अधिक परमाणुनो समुदाय तेनी बीजी वर्गणा जाणवी एम एकेका रसाविजागें Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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