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________________ ६४० शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ, ५ त गुण हीन; असंख्यात गुण हीन, कोई तुल्य योग स्थानकें पण होय. एम अनियमें होय, तो कोइ जीव वधते, को घटते, को तुय्य योग स्थानके पण वर्ते पण निऔर न होय. “सबो विअपजातो, पश्खण मसंखगुणाए जोगवुड्डीए ” इति बृहछतकचूर्णी. एम योगवृद्धियें करी कर्मना प्रदेशनी तथा हि के० स्थितिनी वृद्धि होय. हवे जीवने प्रत्येकें एकेक स्थितिस्थानक विशेषे अध्यवसायस्थानके बंधाय, ते कहे . स्थिति, स्थानक स्थानक प्रत्ये तीव्र, तीव्रतर, मंद, मंदतर, मंदतमादिक, असंख्याते अध्यवसाय स्थानकें बंधाय, तिहां जघन्य स्थिति असंखलोगसमा के० श्रसंख्यलोकाकाशप्रदेशप्रमाणे काषायिक अध्यवसाय स्थानकें बंधाय. ते थकी वली समयाधिक स्थिति बंधाय, ते वली विशेषाधिक अध्यवसाय स्थानकें बंधाय. एम छिसमयाधिक, त्रिसमयाधिक स्थितिस्थानकें विशेषाधिक विशेषाधिक स्थितिस्थानक वधारता, वधारतां एक पल्योपमनी असंख्यात नाग मात्र स्थितिस्थानक अतिक्रमे थके, जघन्य स्थितिना अध्यवसाय स्थानकथी बमणां अध्यवसाय स्थानक थाय. एम वली पण तेटलांज स्थितिस्थानक अतिक्रमे थके, बमणां बमणांअध्यवसाय स्थानक थाय, ते पण एक पढ्योपम मात्र स्थिति वृद्धियें असंख्याता छिगुण वृछिनां स्थितिस्थानक पण थाय. एम एक आयुःकर्म विना शेष सत्तसु के सात कर्मनां जघन्य स्थितिस्थानक थकी मामीने अद्यवसायाअहिया के विशेषाधिक, विशेषाधिक, अध्यवसाय स्थानक वधतां होय. । आजसु के आयुःकर्मनी जघन्य स्थितियें जे सर्वस्तोक अध्यवसाय स्थानक होय तेथी द्वितीय स्थितियें असंखगुणा के असंख्यातगुणां होय. तृतीयस्थिति असंख्यातगुणा अध्यवसाय स्थानकें होय. एम असंख्यात गुणां अध्यवसाय स्थानकें करीने समयाधिक स्थिति वधारतां उत्कृष्टस्थिति सुधी जये. एम कषायोदयनेदें करी आत्मानो जे अशुद्ध स्वजाव विशेष, ते अध्यवसायस्थानक जाणवां. ते अध्यवसायस्थानक, रस वीशेषना हेतु जाणवां. अव्य, देत्र, काल, नाव, प्रतिबंध, रस, विपाक, नियामक, ते सात कर्मनी जघन्य स्थितियें असंख्याता अध्यवसाय, ते थकी समयाधिक समयाधिक स्थितियें विशेषाधिक विशेषाधिक अध्यवसायस्थानक वधता होय. ते उत्कृष्ट स्थिति पर्यंत विशेषाधिक, विशेषाधिक, वधतां लेवाय. अने आयुःकर्मनां स्थितिस्थानकें स्थानकें यद्यपि अध्यवसाय स्थानक असंख्यात गुणां वधे डे, तथापि ते सर्व कर्मथी थोमां जाणवां. अने नामकर्म तथा गोत्रकर्मना संख्यातां तथा असंख्यातां पण स्थितिस्थानक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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