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________________ ६१७ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ ॥ हवे विकलें जिय तथा असंन्नीया पंचेंजियनो जघन्य स्थितिबंध कहे .॥ विगल असन्निसु जिठो, कणि पल्लऽसंख लागुणो ॥ सुर निरयान समादस, सदस्स सेसाज खुद नवं ॥ ३ ॥ अर्थ- विगलअसन्निसुजिहो के विकलेंजिय अने असंझी पंचेंजियनो जे उत्कृष्टस्थितिबंध ले ते थकी कणिक के जघन्य स्थितिबंध पक्षऽसंखनागुणो के० पव्योपमने असंख्यातमे नागें ऊणो एक श्रायु वर्जीने शेष प्रकृतिनो बंध जाणवो. एटले बेंजियने ज्ञानावरणादिक वीश प्रकृतिना सातश्या पंच्चोतेर जाग ने तेमांधी पट्योपमने असंख्यातमें नागे जणो जघन्य स्थितिबंध जाणवो; तेंजियने सातीश्रा दोसो नाग ले ते पढ्योपमने असंख्यातमे जागे कणो करतां जघन्य स्थितिबंध थाय, चौरिंजियने सातीया त्रणसो जाग ने तेमांथी पढ्योपमने असंख्यातमें नागें उणो जघन्य स्थितिबंध जाणवो. एम जे प्रकृतिनो जेटलो उत्कृष्ट स्थितिबंध कह्यो डे तेथी पढ्योपमने असंख्यातमे जागें ऊणो जघन्य स्थितिबंध जाणवो. हवे थायुनो जघन्य स्थितिबंध कहे , तेमध्ये सुरनिरयाउसमादससहस्स के देवायु तथा नरकायु, ए बे आयुनो जघन्य स्थितिबंध समान बे केम के देवता तथा नारकी दश वर्षपर्यंत मरण न पामे माटें दश हजार वर्ष जाणवू; तथा दश हजार वर्ष थकी समय समय अधिक करतां यावत् तेत्रीश सागरोपम एक समय हीन सुधीना जे स्थितिनां थानक ते मध्यमायु जाणवो; ते मध्ये परमायु एकेकास्थिति स्थानके असंख्यात देवायु होय, एम नारकीने विषे पण जाणवो. परतुं एटलुं विशेष जे नेवु हजार वर्षथी यावत् दश लाख वर्ष एटली स्थिति ते नरकायु नश्री, बीजा सर्व स्थानक वस्तांबे, ए बे आयुथी सेसाउखुड़नवं के शेष थाकतां रह्यां जे मनुव्यायु तथा तिर्यगायु ए बे आयुनो जघन्य स्थितिबंध खुवकजव एटले सर्वन। अपेदायें न्हानो नव ते बसें ने उपन्न श्रावलिका प्रमाण होय. अहींां श्रागम मध्ये मनुष्य तिर्यचर्नु जघन्यायु अंतरमुहर्त प्रमाण कडं बे. पण जाणीयें ये जे ए अंतरमुहूर्त्त दुखक नव प्रमाण लेवो, जै जणी अंतर मुहूर्त्तना पण असंख्याता नेद जे, ते माटे. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३० ॥ ॥ हवे सर्व प्रकृतिना जघन्य स्थितिबंधे जघन्य अबाधाकाल कहे.॥ सवाणवि लहु बंधे, निन्न मुहु अबाद आन जिवि ॥ के सुरान समजिण, मंत मुहु बिंति आदारं ॥ ३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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