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________________ शतकनामा पंचम कर्मग्रंथ. ५ जए शेष अजयाश्यगेनऊ के अजय एटले अविरति सम्यकदृष्टि गुणगणाथी मामीने अगीथारमा उपशांतमोहगुणगणासुधीना आठ गुणगणे नजनायें होय. जे जणी झायोपशमिक सम्यकूदृष्टिने मिथ्यात्वमोहनीय उवेले थके मोहनीयनी त्रेवीश तथा बावीश प्रकृतिनी सत्तायें वर्तताने मिथ्यात्वनी सत्ता न होय, तथा दायिकने पण न होय, अने जेणे मिथ्यात्व उपशमाव्यु होय तेने सत्ता होय, तेथी ए आठ गुणगणे मिथ्यात्वमोहनीयनी अध्रुवसत्ता होय. तथा सासाणेखबुसम्म के सास्वादन गुणपणे वर्ततो नियमा मोहनीय एकज शहावीश प्रकृतिनुं सत्तास्थानक होय, परंतु मोहनीयना बे, त्रण सत्तास्थानक न होय. जे नणी उपशमसम्यक्त्वें करी त्रिपुंज करी त्यांथी पडतो सास्वादनगुणगणे आवे, त्या सर्व मोहनीय प्रकृतिनी सत्ता होय, तेथी सम्यक्त्वमोहनीयनी साखादने ध्रुव सत्तं के सत्ता जाणवी. अने मिबाश्दसगेवा के शेष मिथ्यात्व, मिश्र, अविरति, देशविरति, प्रमत्त, अप्रमत्त, निवृत्ति, अनिवृती, सूक्ष्मसंपराय अने उपशांतमोह, ए दश गुणगणे सम्यक्त्वमोहनीयनी सत्तानी नजना जाणवी, जे जणी सम्यक्त्व पामी पळी मिथ्यावें श्राव्यु होय ते ज्यांसुधी सम्यक्त्वपुंज उवेले नहीं, त्यां लगें सम्यक्त्वमोहनीयनी सत्ता होय, अने सम्यक्त्वपुंज उवेल्या पली तथा अनादि मिथ्यादृष्टि जीवने सम्यक्त्वमोहनीयनी सत्ता न होय, तेमज त्रीजे मिश्रगुणगणे पण जो सम्यक्त्वपुंज उवेली आव्यो होय तेने सम्यक्त्वमोहनीयनी सत्ता न होय, बीजाने होय, तथा अविरत्यादिक श्राप गुणगणे दायिक सम्यकदृष्टिने सम्यक्त्वमोहनीय खपावी तेथी तेने सम्यक्त्वमोहनीयनी सत्ता न होय, तथा दायोपशमिक श्रने औपशमिक सम्यक्ट, ष्टिने ध्रुवसत्ता होय. एम पाठ गुणगणे सम्यक्त्वमोहनीयनी श्रध्रुवसत्ता कही ॥ शति समुच्चयार्थः ॥ १०॥ सासण मीसेसु धुवं, मीसं मिलाइ नवसु जयणाए॥ आइ उग अण नियमा, नश्ा मीसाइ नव गम्मि ॥ ११ ॥ अर्थ-सासणमीसेसु के सास्वादन अने मिश्र, ए वे गुणगणे मीसं के मिश्रमोहनीयनी सत्ता, धुवं के ध्रुव जाणवी. केम के सास्वादने सर्व अहावीशे मोहप्रकृतिनी सत्ता ध्रुव होय, अने मिश्रमोहनीयना उदयविना मिश्रगुणगणुं होयज नहीं, तेथी त्यां पण मिश्रनी सत्ता ध्रुव होय. एम ए बे गुणगणे मिनमोहनीयनी ध्रुवसत्ता जाणवी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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