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________________ ५६० षडशीतिनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ समुज्ने विषेधाव्यो ने तेथी पागला एकेके छीप,समुज्ने विषे तेमांहेलो एकेको सरसव मूकतां जश्य.एम करतांजेवारे ते प्रतिशलाका पल्य खाली थाय तेवारें बीजो सरसव चोथा महाशलाक पक्ष्यने विषनाखीयें, एवीज रीतें फरी अनवस्थितें करी शलाका जरीयें, अने शलाकायें करी प्रतिशलाका जरी खाली करतां एकेक सरसव, महाशलाकामांहे प्रक्षेप करतां थकां महाशलाका नामे चोथु पत्य पण संपूर्ण शिखापर्यंत जरियें, वली पण श्रनवस्थितनी संख्यायें करी, शिलाका पूर्ण नरियें, तेम वली शलाकाने उलवी उलवीने एकेक प्रतिशलाका सरसवे करी प्रतिशलाका पक्ष्य पण पूर्ण जरियें, श्रने वली पण अनवस्थितनी संख्या करी शलाका पूर्ण नरियें. तेवार पनी वली जिहां जेनो बेहो सरसव मूक्यो, ते दीप श्रथवा समुन जेटलो लांबो, पहोलो, हजार योजन जंडो, साडाथा योजन ऊंचो, एवो अनव स्थित पालो पण सरसवें करी जरियें. एम जाकिरफुडाचउरो के० एम चारे पाला सरसवें करी फुडा एटले शिखापर्यंत संपूर्ण नराय. हवे बागल को पांचमो पालो नथी कल्प्यो के जे पालामांहे महाशिलाका गलववानी संख्या अर्थे दाणो मूकी, तेथी ते चोथो पालो जस्यो रह्यो तथा प्रतिशिलाकाने गलववानी संख्याने काजे दाणो मूकाय, ते पण महाशिलाकामध्ये समावतुं नथी तेथी ते पण नस्यो रह्यो, एम शिलाकासंख्यानो दाणो पण प्रतिशिलाकामांहे न समावे, तेथी ते पण नस्यो रह्यो तथा अनवस्थितनी संख्या सरसव पण शलाकामध्ये न समावे. तेथी ते पण नस्यो रह्यो । उए॥ पढमति पल्लुद्धरिआ, दीवुददी पल्ल चन सरिस वाय ॥ सबोवि एस रासी, रूवुणो परमसंखिऊं ॥ ७० ॥ थर्थ-हवे पढमतिपयुकरिया के पहेला त्रण पाले करी उमस्या जे दीवुदही के छीप, समु, तेना सरसव एटले धुरथी सरसव जे ही, समुळे मूक्या . तेना सरसवनी संख्या अने पहचजसरिसवाय के जे चार पाला नस्या रह्या डे. तेमाहेला सरसवनी संख्या एकठी कीजें. सवोविएसरासी के० सर्व ए राशि जे सरसवना समूह तेमांहेंथी रूवुणो के एक रूप काढी नाखीये. एटले एक सरसव उडी करीयें, तेवारें परमसं खिऊं के उत्कृष्ट संख्यातुं थाय,तेमांदेथी पण एकादिरूप हीन करतां श्रने त्रणथी मांडीने उपरांत मध्यम संख्यातुं थाय. अने बेनी संख्या ते जघन्य संख्यातो जाणवो. एम त्रए संख्याताना नेद कह्या. ॥ ७० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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