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________________ ដូច០ बंधस्वामित्वनामा चतुर्थ कर्मग्रंथ. ४ __ अर्थ- जवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी अने वैमानिक, ए चार. सुर के देवगतिनाम, नर के मनुष्यगतिनाम, एकेजिय, विकलेंजिय, पंचेंजिय, जलचर, स्थलचर ने खेचर, ए सर्व, तिरि के० तिर्यंचगतिनाम. साते नरकना नारकीने निरय के नरकगतिनाम. एम गतिनी अपेक्षायें सर्व संसारी जीव विचारतां चार नेदें होय. ए प्र. थम चार, ग के० गतिमार्गणा जाणवी. ग के एकेंजिय ते पृथिव्यादिक पांच स्थावर , विष के बेंजिय, ते शंखादिक, तिथ के० तेंजिय, ते कीमीप्रमुख, चउ के० चरिंजिय ते जमरादिक, पर्णिदि के देवता, नारकी, असंज्ञीश्रा, संझीश्रा, मनुष्य तथा तिर्यंच, एम विचारतां इंजियवंत जीवनी अपेक्षायें सर्व संसारी जीव, पांच प्रकारे होय. ए बीजी इंजियमार्गणा पांच प्रकारे जाणवी. बकाया के प्रकारना जीव कायमार्गणायें विचारतां होय, त्यां नू के० माटी, पाषाण, धातुना नेद तथा मीतुं, पारो, जोमल, रत्ननी जाति, ए सर्व बादर पृथ्वीकाय तथा सूक्ष्म पृथ्वीकाय जीव चौदराजलोके जाणवा तथा जल के० पाणी, हीम, करहा इत्यादिक अपूकाय जीव जाणवा. जलण के अग्नि, वीजली, इत्यादिक तेलकाय जीव जाणवा. अनिल के वायुकाय ते गुंजवायु, विटोली इत्यादिक जाणवा, वण के० आंब निंबादिक, ते प्रत्येक वनस्पति तथा अनंतकाय निगोद सूक्ष्म बादर ए बेनेद वनस्पतिकाय. तसाय के विकलेंज्यि अने पंचेंजिय, ए त्रसकाय जाणवा. एम काया. पेक्षायें उनेदें जीव जाणवा. ए कायमार्गणा त्रीजी जाणवी. मणवयणतणुजोगा के काययोगें करी मनोवर्गणायें अव्य ले मनपणे परिणमावे तेनी साथे संबंधजन्य जीवनुं करणवीर्य, ते मनोयोग. एम जापापणे परिणमे अव्यसं. बंधजन्य जीववीर्य ते वचनयोग, ज्यां श्रात्माप्रदेश विस्तारे, ते काया, तेह संबंधजन्य जे जीववीर्य , ते काययोग, ए त्रणे योगें करी सयोगी जीव, त्रण नेदें जाणवा. एम सर्व जीव, योगमार्गणायें विचारतां मनयोगी, वचनयोगी अने काययोगी, एत्रण प्रकारे जाणवा. ए चोथी योगमार्गणा. ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ १३ ॥ ॥वेष नरि बि नपुंसग, कसाय कोद मय माय लोनित्ति ॥ म सुअऽवदि मण केवल, विनंग मसुअ नाण सागारा ॥१४॥ अर्थ-वेध के वेदमार्गणायें वेदनी अपेक्षायें विचारतांत्रण नेदें सर्व संसारी जीव बेत्यां जे दाढी, मुंब सहित मुखपुरुषाकारवंत, ते अव्यपुरुष जाणवो,अने जे स्त्री विषयिणी अनिलाषारूप मैथुनसंज्ञा सहित जे जीव वर्ते, ते नावपुरुष जाणवो. ए नर के० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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