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________________ ४२३ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. नवमे नागें एकशो ने त्रण प्रकृतिनी सत्ता रहे, त्यां संज्वलनी मायानो क्षय करे, सत्ता विजेदे, एटले नवमा गुणगणानो प्रांत होय. सूक्ष्मसंपराय चारित्र पामे ते पांचमा यथाख्यातचारित्रथी कांश्क जणुंडे केमके सूदमलोजना निदान कांश्क बे तेथी दशमे गुणगणे एकसो बे प्रकृतिनी सत्ता होय अने यथाख्यात ते सर्वथा वीतराग होय. सुहुमि उसय लोहंतो, खीण ७ चरिमेगसय ऽ निद्द खर्च ॥ नवनवश् चरिम समए, चन दसण नाण विग्धंतो॥ ३१ ॥ अर्थ- सुहुमि के सुक्ष्म संपरायगुणगणे ऽसय के एकसो ने बे प्रकृतिनी सत्ता होय, त्यां लोहंतो के संज्वलना लोजनो क्षय होय, तेवारें खीणचरिमेगसय के क्षीणमोहगुणगणे हिचरम समय एकसो ने एक प्रकृति सत्तायें होय, त्यां मुनिदख के बे निखानो क्ष्य थाय, तेवारें नवनवश्चरिमसमए के० नवाणुं प्रकृतिनी सत्ता, बेले समय होय. त्यां चउदसण के चार दर्शनोवरणीय,नोण के पांच झानावरणीय अने विग्धंतो के पाच अंतराय. एवं चौद प्रकृतिनो दय थाय ॥श्त्यदरार्थः॥३१॥ सूक्ष्मसंपराय दशमे गुणगणे ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय ब, वेदनीय बे, मोहनीय एक, मनुष्यायु एक, नामनी एंशी, गोत्रनी बे, अंतरायनी पांच, एवं एकसो ने बे प्रकृतिनी सत्ता रदी. पनी त्यां रह्यो थको अध्यवसाय विशु करी सूक्ष्म लोज पण खपावे, तेथी तेनी सत्ता विछेद थाय. तेवारें एकसो ने एक प्रकृति सत्तायें रही, रूपकश्रेणिमांहे उपशांतमोह अगीआरमुं गुणगणुं न होय. केमके मोहने उपशमावे थके उपशांतमोह कहेवाय डे, अने अहींयांतो मोहने खपावतो गयो २ तेथी तेनी सत्ता पण टालतो गयो जे तेणे करी ते दीपमोहवीतराग बद्मस्थ गुणगणी कडेवाय. अहींतो तेने समय ऊन निजगुणस्थानकाल लगें एकसो एक प्रकृतिनी सत्ता होय. त्यां बेहला समयथी पहेलो समय ते उचरिम समय कहीये. त्यां निजा,प्रचला, ए बे प्रकृति खपावे, तेवारें बारमा गुणगणाने बेदले समयें नवाणुं प्रकृतिनी सत्ता रहे. वहींयां मतांतरे बारमा गुणगणाना बेहले समय चक्षुदर्शनावरणीय, थचकुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय, केवलदर्शनावरणीय, ए चार दर्शनावरणीय अने पांच ज्ञानावरणीय तथा पांच अंतराय, एवं चौद प्रकृतिना आयें तेनी सत्ताविछेद होय, तेवारें केवल ज्ञान उपजे. ए नवाणुंमांहेथी चौदनी सत्ता टली ॥३१॥ पणसी सजोगी अजो, गि चरिमे देव खग गंध उगं ॥ फासह वम रस तणु, बंधण संघाय पण निमिणं ॥ ३२॥ अर्थ- पणसीसजोगि के० तेवारें पंचाशी प्रकृतिनी सत्ता सयोगीगुणगणे होय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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