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________________ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. ყდ त्यां चार प्रकृतिनो उदयविछेद थाय, तेनां नाम कहे बे. एक सम्यक्त्वमोहनी - यना उदयें क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पुलिक होय, ते तो सातमा गुणठाणा सुधी होय, माथी लेइ आगले गुणगणे दायिक तथा औपशमिक सम्यक्त्व जीव 'स्वजावरुचिरूप पुलिक होय. त्यां सम्यक्त्वमोहनीयनो उदय, न लाने तथा प्रथमसंघ रूपकश्रेणि करे ने प्रथमना त्रण संघयणे औपशमश्रेणि आरंने, शेष अर्द्धश्रागले गुण ठाणे ए त्रण संघयणनो उदय न लाने, तेवारें बहोंतेरमांदेथी ए चार प्रकृतिनो उदय काढतां, नाराच, की लिका ने बेवा संघयणना धणी श्रेणि रंजे नहीं. तेथी शेष बहोंतेर प्रकृतिनो उदय श्रवमे गुणठाणे लाने. तेमांथी हास्य, रति, रति, जय, शोक, जुगुप्सा, ए व मोहनीय पापप्रकृति बन्ने श्रेणिना विशुद्धपरिणामें रंजना उदयथी श्रावमा गुणगणाने प्रांतें बेदें, तेवारें पूर्वोक्त बहोंतेरमांथी व प्रकृतिनो उदय विछेदे, तेवारें शेष बाशठ प्रकृतिनो उदय, निवृत्ति बादर संपरायनामा नवमा गुणठाणे लाने. त्यां वली व प्रकृतिनो उदय विच्छेदे, तेनां नाम कहे बे. स्त्री वेदोदयें श्रेणि श्रारंजे ते, प्रथम स्त्रीवेदोदय बेदे पढी पुरुषवेदोदय बेदे, पढी नपुंसक वेदोदय बेदे पढी संज्वलना क्रोधादिक चारनो उदय विच्छेद होय; पुरुष वेदें श्रेणि मांडे ते, प्रथम पुरुषवेदोदय विच्छेदे, पठी स्त्री वेदोदय विछेदे, पी नपुंसक वेदोदय विछेदे; त्रण पढी संज्वलना कषायनो उदय विछेदे. नपुंसकवेदे श्रेणी मांडे ते, प्रथम नपुंसक वेदोदय बेदे, पठी स्त्रीवेदोदय बेदे, पढी पुरुषवेदोदय बेदे. १० संजलण तिगं बबेर्ड, सठी सुहुमंमि तुरिच्य लोगंतो ॥ वसंत गुणे गुण स, हि रिसद नाराय डुग तो ॥ १९ ॥ अर्थ - ने संजल तिगं के० संज्वलन त्रिक, बबेर्ड के० ए व प्रकृतिनो उदयविछेद याय तेवारें सही सुदुमंमि के० सूक्ष्मसंपराय दशमे गुणठाणे शाठ प्रकृतिनो उदय होय, तिहां तुरिलोमंतो के संज्वलननी चोकडीमांडेला चोथा लोजना उदयनो अंत थाय, तेवारें उवसंतगुणे के० उपशांतमोगुणठाणे गुणसहि के० जंगपाठ प्रकृतिनो उदय होय, त्यां रिसदनारायडुग तो के० षजनाराचसंघयण, ने नाराचसंघण, ए वे प्रकृतिनो उदय, विच्छेद पामे ॥ इत्यक्षरार्थः ॥ १७ ॥ पी संज्वलनक्रोध, मान, माया, ए त्रणनो उदयविछेद थाय, केमके एने उदयें, सूक्ष्मसंपराय चारित्र न होय तेमाटे ए व प्रकृतिनो उदय विच्छेद याय तेवारें शेष ज्ञानावरणीय पांच, दर्शनावरणीय ब, वेदनीय बे, मोहनीय एक, खायुनी एक, Jain Education International ५२ For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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