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________________ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ. ए करी स्थितिघात थर थकी मिष्ट तथा कटुक, घातीया तथा अघातीश्रा रसनुं वे. द, ते उदय कहीये. ३ तेहज कर्मनो उदयावलि, प्राप्तरसथी उपरला रसनुं जीववीर्य विशेषे करी खेंची उदयाव लिमहे श्राणी वेदवू, ते उदीरणा. ते पण उदयविशेषज जाणवो. ___४ ते कर्मर्नु बांधवू तथा संक्रमणकरणे करी आपणा स्वरूपने पामी जे कर्म प्र. कृति, तेनुं जीवप्रदेश साथे मली रहे, खरवं नहीं, निधाननी पेरें रहे, ते सत्ता कहीये. ए चार मध्ये बंधन तथा उदीरणा, ए बेहु जीवनां करण, वीर्य विशेष के अने उदय, तथा सत्ता, ए बेहु करण नहीं, एटले ए नावार्थ जे. जेम श्रीवीर जिने जे जे गुणगणे जेटली प्रकृति कर्मनी बांधी, उदय पामी, उदीरी तथा सत्तायें धरी तथा जिहां जिहां जेटली प्रकृतिनो बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता, विछेद लही जे जे गुणगणे जेटली प्रकृति खपावीने अनुक्रमें शुखरूपी थया, ए अपायापगमातिशय गुण प्रगटवारूप असाधारण गुणस्तवन करशे. ॥१॥ ॥हवे प्रथम गुणगणानां नाम तथा स्वरूप कहे . ॥ मि सासण मीसे, अविरय देसे पमत्त अपमत्ते ॥ निअष्टि अनिअहि सुहुमु, वसम खीण सजोगि अजोगि गुणा ॥२॥ अर्थ-पहेवु मि के मिथ्यादृष्टिगुणस्थानक, बीजुं सासण के सास्वादनसम्यक्दृष्टिगुणस्थानक, त्रीजुं मीसे के मिश्रगुणस्थानक, चोथु अविरय के० थविरतिसम्यकदृष्टिगुणस्थानक, पांचमुं देसे के० देशविरतिगुणस्थानक, बहुं पमत्त के प्रमत्तगुणस्थानक, सातमुं अपमत्ते के अप्रमत्तगुणस्थानक, थाउमुं नियहि के निवृत्तिगुणस्थानक, नवमुं अनियहि के थनिवृत्तिगुणस्थानक, दशमुं सुहुम के सूक्ष्मसंपरायगुणस्थानक, अगीधारमुं उवसम के उपशांतमोहगुणस्थानक, बारमुं खीण के० क्षीणमोहवीतरागगुणस्थानक, तेरमुं सजोगी के सयोगीकेवलीगुणस्थानक, चौदमुं थजोगीगुणा के0 अयोगीगुणस्थानक. ए चौद गुणगणानां नाम बे. इत्यक्षरार्थः ॥२॥ ___ त्यां जीवना गुण, ज्ञान दर्शन, चारित्ररूप जीवस्वनाव, तेनो तरतमविशेषकृतनेदें करी गुणगणानां स्थानक डे ते जीवना पण नेद जाणवा. १ प्रथम मिथ्यात्व कहेतां जिनवचनथी विपरीतदृष्टि एटले जीवादिक तत्वनी प्रतिपत्ति जेम धत्तुरानां बीज खाधे थके श्वेत वस्तुने पण पीली वस्तु करी पडिवडे, अंगीकार करे तेम मिथ्यात्वमोहनीयना जोरथी राग, द्वेष मोहादिकना चिन्हसहित जे देवपणाना गुणे करी हीन होय, तेने देव करी माने, आरंज परिग्रहादिकवंत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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