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________________ लघुदेवसमासप्रकरण. २३ए अर्थ- पनरस के चंद्रमाना पंदर मांडला , अने चुलसीश्सयं के सूर्यना एकसोने चोरासी मामलां ते मंडल केवां बे? तो के-एक योजनना एकसठ नाग करिएं तेवा उपन्न के बपन्न नाग प्रमाण चंडनां मांडलांबे, अने अमयाल के श्रमतालीश नाग प्रमाण सूर्यनां मांडला . ए चंछ सूर्यना विमाने रोधन करेली जे क्षेत्रनूमी तेने मंगल कहीएं, अने तयंतराणि गिग हीणा के० ते मंडलना आंतरा एकेके उठा जाणवा, एटले चंडमानां मामला पंदर , तेना चउद अंतरा थाय. अने सूर्यनां मांडला एकसो ने चोरासी बे, तेना अंतरा एकसो ने त्र्यासी थाय. ॥ १० ॥ ॥ हवे चंजमाना एक मंडलने बीजा मंडलनी वचमां अंतर कहे .॥ पण तीस जोयणेना, ग तीस चनरो नाग सगन्नाया॥ अंतरमाणं संसिणो ॥ रविणो पुण जोयणे उन्नि ॥१७॥ अर्थ-पांत्रीश योजन उपर एकसठीयात्रीश नाग. वली एकशीया एक नागना सात नाग करिएं तेवा चार जाग अधिक, एटलुं अंतरमाणं ससिणो के चंद्रमाना एक मंडलथी बीजा मंडलनी वचमां अंतरतुं प्रमाण जाणवू. ते जाणवानी परे लखीएं बे के, मंडल मिश् परिमाणगुणिज॥ तसुगसहिहिनागु हरिजश् ॥ सक मूल रासिहि सोहिडा सेसएगऊणंतर बिजाई॥१॥ जेपुण उप्परि थक्करकेश्॥ तेपुण इंगसही हिगुणेश ॥ अंतर हरिपुण विजेश्यक ॥ सत्तगुण विपडिनाग रहिंतहि ॥२॥ ए रीते मंडल, अंतर जाणीएं. ते केम ? चंजमंगल पंदर डे, ते एकेका, परिमाण जे एकसठीश्रा उपन्न नाग तेनी साथे गुणतां बाउसे चालीश जाग थाय, तेने एकसठ जागे हरतां तेर योजन उपर एकसठीया समतालीश नाग थाय, ते मूलगी जे चारना क्षेत्रनी राशि पांचसे दश योजन उपर एकसठीया अडतालीस नागनी , तेमांहेथी बाद करतां बाकी चारसं सताए॒ योजन उपर एक नाग रहे, तेने चन्द श्रांतरे वहेंचीएं तेवारे पांत्रीस योजन श्रावे, उपर सात योजन रहे तेना एकसठीश्रा चारसे ने सत्तावीश नाग थाय, तेनी साथे प्रथमनो उगस्यो एक नाग नेलीएं तेवारे चारसे ने श्रहावीश नाग थाय, तेने चउद नागे वहेंचतां त्रीश नाग थावे, उपर श्राप वधे, ते एकेकाना सात नाग कल्पीएं तेवारे सातने आठे गुणतां बपन्न थाय, तेने चजदे नाग देतां चार नाग लाने, ए रीते जमाना मंगलनो अांतरो पांत्रीश योजन उपर एकसठीश्रा त्रीश नाग, तथा एकसीथा एक जागना सात नाग करीएं तेवा चार जाग, अधिक थाय. हवे सूर्यमंडल, अंतर कहे बे. सूर्यमंगल एकसो ने चोरासी बे, ते एकेकन परिमाण एकसठी अडतालीश नागर्नु बे; अने चार क्षेत्रनुं परिमाण पांचसे दश यो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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