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अध्यात्ममतपरीक्षा.
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० ए आशंकानो उत्तर कहे बे:--
तो सक्कावुत्तुं जे बुदतहाई जिस्स किरदोसो ॥ जइ तं दूसेज गुणं साहावियमप्पणो किं वि ॥ ७२ ॥ दूस अबाबाद य ज तुह सम्मन तयं दोसो ॥ मयत्तणं वि दोसो ता सित्तस्स दूसरा ॥ ७३ ॥ व्याः कुधा ने तृषा ए वे दोष अडार दोषमां गणीने, कृतकृत्य जे केवली विषे ते बे दोषनो तें जे नाव कह्यो; ते वचन ताराज मतानुयायिमां कहेता शोनाप्रद बे; परंतु पंमितोनी पर्षदामां शोनाने पामे नही; किंतु मूल्य विना ना कहे वाय केमके, कुधा ने तृषा ए बन्ने दोषमां त्यारे गणी शकाय के ज्यारे कोई स्वानाविकात्माना गुणने दूषण लागतुं होय; तेम तो कांई यतुं नथी, केम के, ए नाव वेदनीयकर्मना करेला बे; ते केवलज्ञानने दूषित करी न शके. के मके, केवलज्ञानने दूषण करनार ज्ञानावरणीय कर्म बे. तेम केवलदर्शनने दू षित करना दर्शनावरणीय कर्म बे; तेम सम्यक्तचारित्रने दूषित करी शके नही केमके, सम्यक्तचारित्रने दूषित करनारुं मोहनीयकर्म बे. तेमज दानादिक पां चलब्धिने पण दूषित करी शके नहीं; केमके, लब्धियोने दूषित करनारुं अंतरा य कर्म बे. ए कारण माटे कुधा यने तृषा ए बे दोष कहेवाय नहीं. यहिं को ई शंका करशे के जेम कुधा तथा तृषावमे उद्मस्यने ईर्ष्या समिति श्रुतान्यासा दिको जंग दीगमां यावेळे ; तेम केवलीने पण चारित्रज्ञानमां प्रतिबंधरूप शा सारू न थाय ? एनो उत्तर या बेः यद्यपि कुधा तथा तृषा ए बे बहिरिंडिय वृत्तिनी ग्लानि करवाने लीधे एकेंद्रिय ज्ञानादिकना विरोधी थायले. तथापि यतीं यि ज्ञाननो घात करी शकतां नथी, कोई एवी आशंका करे के, जीवनो य व्याबाध गुण बे. एटजे निराकुलत्वरूप जे जीव, तेने दूषित करनारी कुधा तथा तृ षा बे. केमके, ते याकुलता परिणामरूप बे. जे याकुलतानी कुधावमे निवृत्ति थायले, तेक्कुधानी परिणामक डे ने कुधा तेनो परिणाम बे; अने जे खाकुल तानी तृषावडे निवृत्ति थायले, ते तृपानी परिणामक बे ने तृषा तेनो परिणाम a. ने एम कहे के, केवलीनो सिद्धत्व गुण बे, तेने दूषित करनारुं मनुष्यपणुं पण दोषरूप केम न कहेवाय ? इत्यादिक विचार करी पोतानी कल्पना मूकीने घातिकर्मा करेला मार दोष जेवी रीते पूर्वाचार्य कह्याबे, तेवी रीतेज मानवा
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