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________________ श्री समयसारनाटक. ६६ए करेले, पण ते पुःखदंडथी बूटी शक्तो नथी; जेम हृदयमा लोद कटकी के लोढाना कांटानी श्रणीमां नरायो एवो म बुटो थई शकतो नथी, तेथी मत्स्यनुं चेतन अशा ता पामे, अने संद के बुटे तो शाता लहे पण बूटे नही; वली कोई माणस ताप ज्वर अने माथाना दरदथी हेरान थतो पथारीमा पनी रह्यो होय अने ते मनुष्य पो ताना कार्य करवाने वास्ते त्यांथी उठवाना अनेक उपाय करतो बतां पोताना स्वळ दथी उठी शकतो नथी, तेमज झानवंत जीवतो सर्व देय उपादेय जाणे बे पण को पोतानुं बल चाले नही; पूर्व संचित कर्मना फलना फंदथी एटले कर्मना उदयथी बांध्यो फरे ॥४६॥ हवे बालसुने निरुद्यमीनी जेवी अवस्थाले तेवी बतावे :-श्रथ यथावस्था वर्ननं:- . ॥ चौपाई॥-जे जिय मोहनींदमें सोवै, ते बालसु निरुद्यमि होवै; दृष्टिखोबिजे जगै प्रवीना; तिन्दि थालस तजि उद्यम कीना ॥४॥ अर्थः- जे जीव मोहरूप निखानेविषे सुश्रह्या , ते जीवने बालसु कहीए ने तेज निरुद्यमी कहेवाय. अने जे प्रवीण जीव ज्ञान दृष्टि खोली जागृत , ते बालस त जीने उद्यम करे ॥४॥ हवे बालसु ने उद्यमीनी क्रियानुं वर्णन करे :- श्रथ यथावस्थातथा क्रिया कथनं: ॥ सवैया इकतीसाः॥- काच बांधै सिरसों सुमनी बांधै पायनिसों, जानै न गवार कैसी मनी कैसो काच है; योंदी मूढ जूठमें मगन जूनहिकों दौरै, जूठ बात मानै पै न जाने कहा साच है; मनीकों परखि जानै जोहरी जगत मांहि, साचकी समुजी ज्ञान लोचनकी जाच है; जहांको जु वासी सो तो तहांको मरम जाने, जाको जैसो स्वांग ताको तैसेरूप नाच है ॥ ४ ॥ अर्थः- काचने माथानपर बांधे अने मणिने पगे बांधे, एवा गमार लोकने खबर नथी होती के काच शी वस्तु बे, अने मणि शी वस्तु ? एम मूढ अज्ञानी जीव फूठी वातमा मग्न रहे, ग कार्यमा दोडे, श्रने फूठी वात माने, पण एम न जाणे के एमां साच केटबुंडे ? मणि रत्ननी तो जे जवेरी होय तेज जगत्मां परीक्षा करी शके, ते मज साचानी समऊ पण तेनेज पडे, जेने ज्ञानरूपी लोचननी उत्पत्ति थई होय ? के मके, जे ज्यांनो वासी होय ते त्यांनो मरम जाणे, एटले मिथ्यात्व नूमिकानो वासी मिथ्यात्वनेज ग्रहे श्रने सम्यक्त्व नूमिकानो वासी ते समकितनेज साचुं माने, मतलब जे जेवो वेष धरी श्रावे ते तेवोज नाच नाचेले. ॥ ४ ॥ हवे जे जेवी क्रियाकरे ते तेवं फल पामे ते कहेजेः-अथ यथाक्रिया तथा फलकथन: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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