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________________ श्री समयसारनाटक. हवे आ जवना जय निवारण रूप मंत्र कहे:- श्रथ इह जव जय निवारण कथनं: ॥बप्पय बंदः॥-नख शिख मित परवान, ज्ञान अवगाह निररकत; आतम अंगअनंग, संग परधन म अरकत; बिननंगुरसंसार, विजव परिवार नारज सु; जहाँ उतपति तहाँ प्रलय, जासु संयोग विरह तसु; परिग्रह प्रपंच परगट परखि, ह जव नय उपजै न चित; ज्ञानी निशंक निष्कलंक निज; ज्ञानरूप निरखंतनित ॥ २७॥ अर्थः- पगना नखथी ते माथानी शिखासुधी एटले सर्व शरीर प्रमाण श्रात्मानो गुण जे ज्ञान ते अवगाह के व्याप्ति तेने जुए, एवां नख शिख सहित ज्ञानमय श्रा मानुं अंग अनंग रहे, तेनी साथे पुजल डे तेने परधन के० परजव्य कहेडे, अने सर्व संसार क्षणभंगुर , ने तेने जे विनव परिवाररूप नार बे, ते पण क्षणभंगुर बे, अने जेनी उत्पत्ति तेनो विनाश , जेनो संयोग तेनो वियोग पण थाय बे, एवो परिग्रहनो प्रपंच प्रगट परखीए तो था नवनो नय चित्तमां उपजे नही. ए रीते जे झानी होय ते परिग्रहना वियोगनी चिंता न राखे, निःशंक रहे, पोतानुं निष्कलंक वरूप ज्ञान मय सदा जुए. ॥२७॥ हवे परलोकनय निवारण, मंत्र कहेः- श्रथ परलोक लय निवारण मंत्रः॥बप्पय बंदः॥-झान चक्र मम लोक,जासु अवलोक मोख सुख; इतरलोक मम नाहि नांहि जिसमांहि दोष मुख; पुन्न सुगति दातार, पाप पुरगति पद दायक; दो खंकि त खा निमें, अखंमित है शिवनायक; इह विधि विचार परलोक नय, नहि व्यापक वरते सुखित; ज्ञानी निःशंकनिष्कलंक निज झानरूप निर्खतनित ॥ २ ॥ अर्थः- ज्ञान चक्र के ज्ञान विस्तार तेतो ममलोक के मारो लोक , महारो प्र चार बे, तेने प्रत्यक्ष जोवो, अने मोद सुख बन्ने रूप में, अने इतर लोक के० तेवि ना अन्य लोक ते मारो नथी, महारो शान लोक मारी साथेबे, जेनेविषे दोष फुःख नथी. परलोकमां सुगतिनुं देनार पुण्य बे, श्रने परलोकमां कुगतिर्नु आपनार पाप बे. ए बे पुण्य पाप आत्मानी खंडनानी खाणी जे. अने हुं अखंडित रूप बु. शिवना यक के सिद्धरूपी बुं एवा विचारथी परलोक लय व्यापे नही; अने सुखित के० सदा सुखवंत वर्ते; ए प्रमाणे परलोक जय बांमिने ज्ञानी पुरुष निशंक थको निष्कलंक एवं जे निजज्ञानरूप तेने सदा निरखे ॥ २ ॥ हवे मरणजय निवारणनो मंत्र कहे बेः-अथ मरन नय निवारण मंत्रः॥ उप्पय बंदः॥- फरस जीन नाशिका, नैन अरु श्रवन श्रद इति; मन वच तन बल तीन, सास उस्सास थाउ थिति; ए दस प्राणविनाश, ताहि जग मरण कहीजे; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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