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________________ ६४४ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. श्रथ नेदशान मोदमूल यहु कथनः-- ॥ उप्पय बंदः।- प्रगट नेद विज्ञान, श्रापगुण परगुणजानै परपरिनति परि त्यागि शक अनुनय थिति गन; करि अनुनव श्रन्यास, सहज संवर परगासे, श्राश्रव घार निरोक, कर्म घनतिमिर विनासै; आय करि विन्नाव समन्नाव नजि, निरविकल्पनिज पद गहै; निर्मल विशुद्ध सासुत सुथिर, परम अतींजिय सुख लहै. ॥ ७ ॥ अर्थः- नेद झान जे जे ते प्रगटपणे पोताना तेम पारका गुणने जाणे, तेथी पर वस्तुमा जे परिणमन ले तेनुं ज्ञान करे, पोताना शुफ अनुजवनो ठराव राखे, ने ते अनुनवनो श्रन्यास करीने सहज संकरना रूपनो प्रकाश करे, श्राश्रव हारनो निरो ध करीने कर्मरूप मेघ अंधकारनो नाश करे; अने विजाव के मोह दशानो क्ष्य क रीने समजाव के समाधिने जजे, तेणे करीने ज्यां कोई विकल्प नथी एवं पोतानुं निर्विकल्प पद तेने पामे, एटले जे सुखनेविषे मल नथी ए उपरथी ते विशुद्ध अनंत कालसुधी एकरूप तेथी शाश्वत स्थिर एवं अतींजिय के इंडियगोचर नही एवं सुख पामे. ॥ इति श्री समयसारनाटकको बालाबोधरूप संवर घार बठगे संपूर्णः॥ ॥ दोहाः-बरनी संवरकी दसा, जथा जुगति परमान; मुक्ति वितरनी निर्जरा, सु नहु नविक धरि कान ॥ ७ ॥ अर्थः-संवररूपनी दशा कही ते युक्ति तथा प्रमाणे करी कही; हवे मुक्तिनी वितरणी के० आपनारी एवी जे निर्जरा तेनुं वर्णन करुवुः- ते अहो! नव्य लोको तमे कान दर्शने शांचलो. ॥ ७ ॥ हवे निर्जरा- केतुं स्वरूप ने ते कहेः- अथ निर्जराखरूप कथनः॥ चौपाई॥-जो संवर पद पाश् अनंदे; जो पूरव कृत कर्म निकंदे; जो अफंद ठहै बहुरि न फंदे; सो निरजरा बनारसि बंदे. ॥ ए॥ अर्थः-पोतानुं जे शुद्ध स्वरूप राखतुं तेनुं नाम संवर कहिये; तेनुं पद पामीने संवर थानंद करे; अने पूर्व कालनेविषे जे कर्म कीधांजे, तेने जमथी उखेमी नाखे; श्रने जे पूर्व कर्मना फंद ते थकी बूटीने पाहु ते फंदमां सपडाय नही तेनुं नाम श्रात्मानी निर्जरा कहिये. ते निर्जराने बनारसी दास वंदन करे. ॥ ए॥ निर्जरानुं कारण सम्यक्त्व , माटे सम्यक्त्वनो महिमा वखाणे बेः अथ सम्यक्त्व महिमा कथन:___॥ दोहाः॥-महिमा सम्यक् ज्ञानकी, अरु विराग बल जोश; क्रिया करत फल तुं जते, करमबंध नहि हो. ॥ ७ ॥ अर्थः-जे कर्म बुटे तेनुं फरीने बंधन यश् शके नही, ए सम्यग् ज्ञाननो महिमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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