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________________ ६३६ प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. ॥ दोहराः॥ - पुन्य पापकी एकता, बरनी श्रगम अनुप; अब श्राश्रव अधिकार कहुँ, कहीं अध्यातम रूप. ॥ ५२ ॥ -- यर्थः- पाप पुण्यनी एकता तो गम बे घने अनुपम बे तेनुं वर्णन कीधुं, दवे कक श्रावनो अधिकार बे ते कहुं अने अध्यात्मनुं स्वरूप कहुबुं ॥ ५२ ॥ श्राव सुटनो नाश करनार ज्ञान सुनटने नमस्कार करे बेः - थज्ञानबल वर्णनं :॥ सवैका इकतीसाः॥ - जे जे जगवासी जीव थावर जंगम रूप, ते ते निज वस करी राखे बल तोरिके; महा अभिमानी ऐसो श्राव अगाध जोधो, रोपि रनथंज वा ढो जयो मूब मोरिके; यो तिहि थानक अचानक परमधाम, ज्ञान नाम सुजट सवायो बल फोरके, श्राश्रव पठार्यो रनथंज तोरि डार्यो ताहि, निरखी बनारसी नमत कर जोरिके ॥ ५३ ॥ ; अर्थः- जे जे थावर जंगमरूप जगत्वासी जीव बे, तेना सहज बल ने तोमीने ते ते जीवोने व जोधाए पोताने वश करी राख्याबे, एवो महा अभिमानी श्राश्रवरूपी अगाध जोको जगत्मां रहे बे, ते रथं रोपीने मूल मरोमीने वाढो थयो बे; ते एम कदेबे के, जगत्मां मने जीते एवो कोइ नथी. ते स्थले अचानक परम धाम के० अति तेजस्वी ज्ञान नामनो सुजट उपला श्राश्रव जोद्धानो प्रतिपक्षी ते सवायो बल फोरवीने लडवाने श्रव्यो; तेथे श्राश्रव सुनटने पछाड्यो अने तेनो रणथंज तोमी नाख्यो. एवा ज्ञान सुनटने निरखीने बनारसीदास हाथ जोडी नमस्कार करेबे ॥ ५३ ॥ दवे द्रव्यरूपी श्राश्रव ने जावरूपी श्राश्रवनां लक्षण कहे :- अने सम्यग्ज्ञाननुं लक्षण पण कदेबे :- श्रथ द्विविध श्राश्रव लबन तथा ज्ञान लबन वर्णनं: ॥ सवैया तेइसाः ॥ - दर्वित श्राश्रव सो कहिये जहिं पुल जीव प्रदेस गरासै; जावित श्रवसो कहिए जहिं राग विरोध विमोह विकासैः सम्यक्पद्धति सो कहिये, जहिं दर्वित जावित श्राश्रव नासै; ज्ञान कला प्रगटै ति हि थानक, अंतर्बारि और न जासे ॥५४॥ अर्थः- ज्यां पुल द्रव्य बे ते जीवना सर्व प्रदेशने ग्रासेबे के० गली जायबे, ते द्रवित श्राश्रव जाणीये. अने ज्यां द्रवित श्राश्रवना प्रसंग थकी आत्माने विषे राग द्वेष विमोहनो विकाश थाय त्यां जावित श्राश्रव कहीये, अने ज्यां श्रात्माने विषे स म्यक् पद्धति के सम्यक् स्वरूप कहिये त्यां तेने शक्ति श्राश्रव ने जावित श्र श्रवनो नाश था, एटले सम्यक् पद्धतिने विषे ज्ञान कला प्रगटे, तेथी अंतर्भावाश्रव मां बाहिर व्याश्रवमां बीजुं जासे नहीं, सम्यकूज दीवामां श्रावे ॥ ५४ ॥ दवे सम्यक् स्वरूपनो धणी जे ज्ञाता तेनुं लक्षण कहेबे श्रथ ज्ञाता लक्षणं:--- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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