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________________ ६०८ प्रकरण रत्नाकर जाग पहेलो. लईने पेहेतुं, एटलामां ते वस्त्रनो खरो मालक मट्यो, तेणे जोईने कधुं के, जाई, या वस्त्र जे तें पेहेयुं बे, ते महारं बे. ते वखते पेला मनुष्ये ते वस्त्र जोयुंने परा युंज बे एवं जाएयुं, तेवारे ते वस्त्रनो त्याग जाव उपज्यो, ने तेणे ते वस्त्र तेनाध पीने वाले की धुं. तेमज जीवने अनादि कालयी पुलनो संयोग थयो बे, एटले शरीर तथा कर्मनो संयोगी जीव अनादि कालनो बे, ते संगना ममत्वथी विजावता एटले उलटा जावमां वही रह्यो हतो ते ज्यारे जड चेतननी निन्नतानुं ज्ञान ययु त्यारे ते पोताना स्वरूपने तथा परना स्वरूपने समज्यो; अने ते पर रूपथी जुदो थयो ने पोताना स्वरूपनुं ग्रहण कीधुं ॥ ८३ ॥ ज्यारे निश्चय पोतानुं स्वरूप जायुं त्यारे ज्ञाता एवो विचार करवा लागे ते कहेबे :sar निश्चय स्वरूप कथनः ॥ मिल बंदः ॥ - कहै विचछन पुरुष सदा हों एकहों, अपने रससों जस्यो श्रापनी टेकहों; मोड़ कर्म मम नांहि नांहि जम कूप है; शुद्ध चेतना सिंधु हमारो रूप है . ॥ ४ ॥ अर्थः- विचक्षण पुरुष केदेबे के, हुं सदा एक पणे रहुं हुं; चेतना रस वडे जर पूर ढुं, अने पोताना आधारथी रहुं हुं, मने बीजानो श्राश्रय नथी, अने जे जात जा तनो मोद कर्मनो प्रपंच बे ते महारुं स्वरूप नथी, ए चम रूप कूप बे ते मारुं स्व रूप नथी; पण शुद्ध चेतनानो सिंधु के० समुद्र ते मारुं रूप बे. ॥ ८४ ॥ दवे एवा पोताना स्वरूपने जाण्याथकी केवी अवस्था प्राप्त थई ते केदेबे : अथ ज्ञान व्यवस्था कथनः ॥ सवैया इकतीसाः॥ - तत्त्वकी प्रतीतिसों लख्यो है निज पर गुन, हग ज्ञान चरन त्रिविध परिनयो है; विसद विवेक थायो आबो विसराम पायो, श्रपुदीमें आपनो सहारो सोधि लयो है; कहत बनारसी गहत पुरुषारथकों; सहज सुनाउ सों वि जाउ मिटि गयो है; पन्नाके पकाय जैसे कंचन विमल होतु, तैसे शुद्ध चेतन प्र काश रूप नयो है. ॥ ८५ ॥ अर्थः- एवी जीव तत्त्वनी प्रतीति थइ तेणे करीने ज्ञानादिक निजगुणाने परगुण बीजा व्यनागुण जे गति, स्थिति, श्रवगाद, वर्त्तना, वर्णादिक ए सर्व लखीने दर्श न, ज्ञान अने चारित्र ए त्रणे गुणने विषे परिणमी रह्यो बे; निर्मल विवेक श्राव्याची सारो विश्राम पायो ते स्थिरता पामीने पोतानो विषेज पोतानो सहज स्वभाव शो धी लीधो. हीं वणारसीदास केबे के त्यारे या पुरुषार्थ ते श्रात्मस्वरूप अर्थ तेनुं ग्रहण करीने सहज स्वजावमां राग द्वेष मोहरूपी विजाव जे अनादिकालनो हतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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