SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ខូចច प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. देखे. त्यारे कर्म कलंक तेहिज पंक के कादव तेथी रहित प्रगटरूपथचल अबाधित सर्व बाध रहित एवो शाश्वत निरंजन देव परमात्मा पोते , एवं देखे. ॥ ६४ ॥ अथ गुण गुणी अनेद कथन व्यवस्था. ॥सवैया तेईसाः॥-शुद्ध नयातम बातमकी अनुभूति बिज्ञान बिजूतिहि सोई वस्तु विचारत एक पदारथ नामके नेद कहावत दोई; यों सरवंग सदा लखि श्रापुहि, था तमध्यान करै जब कोई मेटि अशुधि बिजावदशा तब सिझसरूपकि प्रापतिहोई६५॥ अर्थः-हवे शुद्ध अनुनव जे जे ते गुण बे, एक श्रातमा गुणी , तेनुं जेवू अनेद स्वरूप दे तेवी अनेद अवस्था कही बतावेजेः-शुद्ध निश्चय स्वरूपी आत्मानो अ नुनूति के० जे अनुजव , तेज विज्ञान विजूती के विशेष रूप ज्ञान संपदा . अहीं थात्मा गुणी छे ने अनुलवज्ञान गुण . हवे ए बे वस्तु गुंडे ? एवो जो वि चार करीये तो एकज आत्मा पदार्थ नासे बे. एकज पदार्थमां था गुण अने श्रा गुणी एवां वे नाम बे. तेज नेद केहेवाय. एम सरवंग के सर्व प्रकारे पोतानेज गु णगुणी रूप लखीने ज्यारे कोई आत्मध्यान करे, त्यारे अशुविजाव दशा मटीने सिझस्वरूपनी प्राप्ति थाय. ॥६५॥ अथ शाता चिंतवन स्वरूप कथन. ॥सवैया इकतीसाः॥-अपनेही गुन परजायसों प्रवाहरूप, परिनयो तिहूं काल अपने श्राधारसों; अंतर बाहिर परकासवान एक रस, खिन्नता न गहै जिन्न रहै नौ विकार सों; चेतनाके रस सरवंग नरि रह्यो जीव, जैसे लोन काकर जाँ है रस बारसो; पू रन सरूप अति उज्वल विज्ञान घन, मोकों होहु प्रगट निशेष निरबारसो ॥६६॥ अर्थः-हवे एज वातने जेम झाता लोक पोताना चित्तमां चिंतवे तेज स्वरूप कही देखाडे बेः-श्रा जे कोई थात्मा केहवाय, ते तो विज्ञान घन बे; विशेष ज्ञान मय पिम बे; ते अतीत, अनागत ने वर्तमान ए त्रणे कालमा प्रवाहरूप कस्याथी अ विभिन्न धाराये पोतानाज गुण पर्याये करीने पोतानाज ज्ञानादिक गुणनी अवस्था ने दने लीधे अने पोताना आधारथी परना आश्रयविना परिणामी रहे . अने ए वि झान घननो एवो महीमा के तेथी मांहे अने बाहिर एक चित्त चेतना रसवमे प्र काशवान थयो जे पोताने जाणे ते अंतर प्रकाश अने बाह्य वस्तुने जाणे ते बाहिर प्रकाश एवा कार्यमां खिन्नता ग्रहण न करे; अने नव विकारयी न्यारो रही सर्व प्र देशविषे चेतनना रसे करी जीव भरपूर थई रह्यो बे. ए जपर दृष्टांत कहे डे के, जेम खुणना कांकरा खार रसथी जरेला , तेम चेतना रसथी जीव नरपूर थई रह्यो बे. एवं पूर्ण स्वरूप. ते अखंमित घjउज्वल जे विज्ञान घन पूर्वे वखाण्युं ते मने प्रगट थाओ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy