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________________ श्री समयसारनाटक. उन्ए विधि नासे, जे पूर्वला गुणस्थानकमां धर्मध्यान चंचल हतुं, ते बांही स्थिरपणे प्र काश करे ॥ ६६ ॥ प्रथम गुणस्थानना अंतपदमां एटले लेखा समयमां चारित्रमोद नीय कर्मने नेदवानो यथा प्रवृत्तिनामे प्रथम करण थयु. श्रांही धर्मध्याननी स्थि रता एवी डे के ज्यां श्राहार विहार क्रिया नथी. ते अप्रमत्त गुणस्थानक होय. ए व चन दिगंबर संप्रदाय ॥६॥ हवे आठमा गुणस्थानकनुं वर्णन कहे:-श्रथ अष्टम गुणस्थानक वर्ननं:॥ चोपाईः।- अब बरनो अष्टम गुनथाना, नाम अपूरव करन बखाना, कबुक मोह उपसम करि राखे, श्रथवा किंचित दयकरि नाखे ॥६॥ जो परिनाम न ये नहि कबहीं, तिन्हको उदो देखिये जबहीं, तब अष्टम गुनथानक होई, चारित करन इसरो सोई॥६॥ अर्थः-- जेनुं नाम अपूर्व करण वखाणीए बीए, हवे ही श्रेणि चढवामा जे उ पशमीक थको चढे तेतो श्रांही कंश्क मोहने उपशमावी राखेडे, अथवा जे आपक थको चढे ले तेतो ही चारित्र मोहनो कंश्क क्षय करि नांखेडे ॥६ए ॥ एवं जे परिणाम पेहेलां को कालमां थयुं नथी ते परिणाममुं ज्यारे प्रगट पणुं देखियेडीए, त्यारेतो श्रामुं गुणस्थानक होय. तेने से समये चारित्र मोहनीय कर्म नेदवाने अपूर्व करण नामे बीजं करण होय तेनुं नाम निवृत्ति पण ॥६ए ॥ हवे नवमा गुणस्थाननुं वर्णन करे:- श्रथ नवम गुणस्थानक वर्णनं:॥चोपाई- अब अनवर्ति करन सुनुं जाई, जहां जाव थिरता अधिकाई पुरव नाव चलाचल जेते, सहज अमोल नए सब तेते ॥ ७० ॥ जहां न नाव उलटि अध श्रावे; सो नवमो गुनथान कहावे; चारित मोह जहां बहु बीजा; सो हे चरण करण पद तीजा ॥१॥ अर्थः-प्रथम अनिवृत्ति करण गुणस्थाननो व्यवहार कहुं बुं ते सांजलो. जे गुण स्थानने विषे स्थिरता नावनी अधिकाई . अने पूर्वनाव कषायना उदयथा जेटला चलाचल नाव होय तेवा सर्व बांही सहज अमोल थया ॥ ७० ॥ ज्यां नावथी चढीने फरी तिहांथी पड़ी नीचेना गुणस्थानकें न आवे. एवो शनिवृत्ति कहेवाय, ज्यां चारित्र मोहनीय कर्म घणुंज बुटी गयुं ने तेज ए चारित्र मोहनीय कर्म नेद वानुं त्रीजु अनिवृत्ति करण थयुं ॥३१॥ हवे दशमु गुन स्थानक कहु बुं:- अथ दशम गुनथानक वर्ननं:॥चोपाई॥-कहों दशम गुन थान उसाखा; जहां सूबम शिवकी अनिलाषा; सूबम लोज दसा जहां लहिए; सूबम संपराय सो कहिए ॥ ७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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