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________________ १६२ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. हवे साध्यपदमां ज्ञान ज्ञेयतुं विशेष पणुं श्रने अविशेष पणुं कहे; अथ ज्ञान ज्ञेय वीशेष कथनः॥ सवैया इकतीसाः ॥-कोज ज्ञानवान कहे ज्ञान तो हमारो रूप, ज्ञेय षटदर्व सो हमारो रूप नांही हे; एक नै प्रवान एसे जी अब कहों जेसे, सरस्वती अक्षर अरथ एक गंही है; तेसे ज्ञाता मेरो नाम ज्ञान चेतना विराम, झेयरूप सकति श्र नंतमुक पाही है; ताकारण वचनके नेद नेद कहों कोउ, ज्ञाता ज्ञान झेयको वि लास सत्ता मांही हे ॥६॥ चोपाईः ॥ स्वपर प्रकाशक सकति हमारी; ताथे बचन नेद व्रम नारी; झेय दसा द्विविधा परगासी; निज रूपा पररूपा नासी, ॥ ६३ ॥ ॥ दोहराः॥-निजरूपा श्रातम सकति, पररूपा परवस्त, जिनि लखि लीनो पेच यह, तिनि लिख लियो समस्त ॥ ६ ॥ __ अर्थः-कोई ज्ञानवंत प्राणी पोताना अनुनव प्रमाणथी एम कदेबे, के जे ज्ञान ले तेतो अमारु रूप बे. अने जे षट्र अव्य ज्ञेय तेतो अमारुंरूप नथी, तेथी ज्ञान थने झेय विशेषपणामां बे. गुरु कहे बे, एतो एकज नय प्रमाण . हवे बीजा नयथी जेम थविशेषपणुं थाय बे, तेम कहुं बु. जेम सरस्वती के० विद्यारूप अर्थ जे. तेम अदर के० विद्यारूप अर्थ एकठो रहे, तेम झाता ते तो माहारुं नाम थयु. अने जे ज्ञान तेतो चेतनानो विराम के प्रकार बे. अने जे ज्ञान झेय पणे परिणम्युं बे, ते तो शेयरूप शक्ति जे. एवी अनंत शक्ति महारीज पासे .ते कारणथी वचन नेद करीने ज्ञान अने शेयनो नेद कोई जले कहो, पण बीजो नय देखवाथी ज्ञाननो ने शेयनो विलास श्रात्मा सत्तामांज वे. तेथी थविशेष पणुं डे.॥६५॥ जेथी हमारी शक्ति एवी जे पोतानो प्रकाश करे श्रने परनो पण प्रकाश करे तेथी स्वपर प्र काशक बे, तेथी ज्ञान श्रने ज्ञेय ए वचन नेदे जे नेद बे, तेज नारी चम उपजा वेडे; पण वस्तु एक बे. ज्ञेय के जे जाणवा योग्य तेतो दशा बे प्रकारे करीने कही. एक तो निजरूपा बीजी पर रूपा कही ॥६३ ॥ श्रांही जे निजरूप ज्ञेय दशाक हीए तेतो स्वरूप प्रकाशक आत्म शक्ति, अने जे बीजी पर रूप ज्ञेय दशा ते पर वस्तु बे. जेणे एवातनो पेच जाएयो तेणे तो समस्त जाएयुं ॥४॥ हवे एज पेच स्याहादमां जोशए ते स्याहादरूप वस्तुनुं वर्णन करे: अथ स्याहाद रूप वस्तु वर्णनः॥सवैया इकतीसाः ॥-करम अवस्थामे अशुझसो विलोकियत, करम कलंकसों रहित शुद्ध अंग हे; उन्ने नै प्रवान समकाल सुहासुखरूप, एसो परजाधारी जीव नाना रंग हे; एकही समेमें त्रिधारूप पे तथापि याकी, अखंमित चेतना सकति स Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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