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________________ ७५६ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. हवे मोद साधकनुं उदाहरण कहेजेः-श्रथ साधक लदखः॥ दोहराः ॥-कृपा प्रसम संवेग दम, अस्ति नाव वैराग; ए लबन जाके हिये, सप्त व्यसनको त्याग. ॥ ४३ ॥ अर्थः-कृपा जे दया, तथा जे कषायना उदयनुं दबाव ते प्रशम श्रने संवेग ते मोदना अनिलाषनुं पद के स्थानक, तथा दम ते इंडियदमन, श्रास्ति एटले जिनोक्त वचन उपर श्रद्धा, एहवो वैरागीनाव; एटलां लक्षण जेना हृदयमा रहे बे, श्रने सात व्यसननो जे त्याग करे तेज साधक होय॥३॥ हवे साते व्यसननां नाम कदेः-अथ सप्त व्यसन नामः॥ चोपाई॥-जूवा श्रामिष मदिरा दारी; भाषेटक चोरी परनारी; एई सात व्य सन मुख दाई, कुरित मूल मुर्गतिके नाई. ॥ ४४ ॥ दोहराः ॥-दर्वित ए सातों व्य सन, पुराचार मुख धाम; नावित अंतर कलपना, मृषा मोह परिनाम. ॥ ४५ ॥ अर्थः-जुगार १, मांस जदण २, मदिरापान ३, वेश्या गमन ४, आखेटक के० शिकार खेलवो ५, चोरी करवी ६, परस्त्री गमन , ए सात व्यसन कहेवाय बे, ते संसारमा पुःखदाई . पापनां मूल अने उर्गतिना जाई बे. ॥४४॥ ए जे क्रिया रूप साते व्यसन ते अव्यरूप जे. ए पुष्ट श्राचाररूप उःख धाम के फुःखद् घ रखे. अने जेना अंतरमा वृथा के० फूठा मोह परिणामनी कल्पना के विचारणा ध्यावन थाय, ते नावित व्यसन कहीए. ॥४५ ॥ हवे नावित सात व्यसननी व्यवस्था कदेबेः-अथ नावित व्यसन व्यवस्था कथन: ॥ सवैया इकतीसाः॥-अशुनमें हारि शुन जीति यहे दूत कर्म, देहकी मगन ताई यहे मांस नषिवो; मोदकी गहलसों अजाने यहै सुरापान, कुमतिकी रीति ग निकाको रस चाखिवो; निरदे व्हे प्राण घात करिवो यदे सिकार, परनारी संग प रबुद्धिको परषिवो; प्यारसों पराई सोज गहीवेकी चाद चोरी, एई सातों व्यसन विडारि ब्रह्म लखिवो. ॥ ४६ ॥ अर्थः-अशुल कर्मना उदयश्री हार मानिये अने शुज कर्मना उदयथी जीत मा निये तेतो जुगार खेलवो बे. देह उपर मग्नता रहे तेतो मांस नदण जाणवू. मोह कर्मथी मूर्बित थई रह्याथी अजाण थई रह्यो होय तेज सुरापान व्यसन . कुबुद्धिनी रीते चालवू तेतो वेश्याना रसनुं चाख बे. निर्दय परिणाम राखीने प्रा पघात करवो, तेज शिकार खेलवो बे. पररूप जे पुजलादिक तेनी बुछिने परखवी तेतो परनारी सेवा व्यसन . पारकी सोंज सामग्री उपर प्रीत राखीने प्यार मेल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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