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________________ उUG प्रकरणरत्नाकर जाग पहेलो. तोपण शेयथी विरक्त जे. जेम पारसीमां श्राकार जासे तोपण ते श्राकाररूप श्रा रसी न थाय, तेम. जो चेतना लक्षणनोपण नाश मानीए तो जीवनी सत्तानो पण नाश थाय, त्यारे जीव वस्तु पण असत् थाय, तेथी जीव तत्त्व जे जे ते ज्ञान चेत नाना प्रमाणथीज मानीए ॥ १५ ॥ हवे बारमो एकांत नय अंशप्रमाण जीव सत्तानो प्रपंच कही बतावे बे: अथ छादश अंस प्रमान यह कथन:॥ सवैया इकतीसाः ॥- कोउ महा मूरष कहत एक पिंझमाहि, जहांलों श्रचित चित्त अंग लहलहे हे; जोगरूप जोग रूप नानाकार झेय रूप, जेते नेद करम के तेते जीव कहे हे; मतिमान कहे एक पिंडमांहि एक जीव, ताहीके अनंत नाव अंश फेली रहे हे; पुग्गलसों जिन्न कर्म जोगसो अखिन्न सदा, उपजे विन से थिरता सुनाव गहे है. ॥ १३॥ अर्थः-कोई बौधमती महा मूर्ख एम कहेडे के, एक शरीरमां ज्यां लगी श्रचि त चित अंग के घटपटादिक थचेतन विकल्प अथवा नर श्रमर तिर्यंचादि चेतन शं ग ते सचित विकल्प चकचकी रह्याडे, योगपरिणामथी योगरूप, जोगपरिणामथी जो गरूप, एम ज्ञेयनां नानाप्रकार रूप जेटलां कर्म के क्रियाना नेद थायजे, तेटलाने जीव संख्या कहेडे, एटले जीव सत्ता अंश प्रमाण थई. हवे बुकिवंत स्याहादी एम कहे के, अहो! नाई! एक पिंडमां एक जीव के अने ते जीवना ज्ञान परिणामे क रीने अनंत नाव जासनरूप अंश फेली रह्यावे. पण जीव , ते पुद्गलथी जिन्न , अने कर्मयोगथी अनिन्न के निराकुल बे, तेमां नाव अंश अनंत उपजे, थने श्र नंत विणसे वे पण जीवतो स्थिरतारूपज ग्रही रह्यो बे॥१३॥ हवे तेरमो एकांतनय दणजंगुर जीवनो प्रपंच कही देखाडे बेः अथ त्रयोदश बिनजंगुर जीव यह कथन:॥ सवैया इकतीसाः॥-कोज एक बिनवादी कहे एक पिंगमांहि, एक जीव उपज त एक विनसतु है; जाही समै अंतर नवीन उतपति हुश्, ताही समै प्रथम पुरातन वसतु है; सरवंग वादी कहे जेसे जलवस्तु एक, सोश जल विविध तरंगनि लसतु है, तेसे एक थातम दरव गुनपरजेसों अनेक जयो पे एक रूप दरसतु है ॥ १४ ॥ अर्थः-कोई एक क्षणवादी बौध एम कहे के एक पिंगमां एक जीव उपजे बे, एक जीव विणसे जे. जे समे पिंडमां नवा जीवनी उत्पत्ति न थाय ते समे पे हलो पुराणो जीव ले ते वसे बे, पडी ते विणसे. एम श्रृंखलाब उपजे विणसे , तेने सर्वांगवादी जैनमती एम कहे के, अहो! नाई! जेम तलाव प्रमुख जलाश्रयमां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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