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________________ ওহহ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः- मूर्ख प्राणीना घटमां धर्मति नासी रही, अने पंडितना हैयामां सुबुद्धि प्रकाश थई रही जे. पुर्बुकि जे ते कंसराजानी दासी जे कुब्जा तेना सरखी . ते कर्मनी कमाई करेने अने सुबुद्धि जे ते राधिका सरखी बे. ते श्रआत्माराम नाय कने रमामनारी ॥१॥ कुब्जा दासी काली अने कुबमी बे, ते जगत्मां खेद प्रयास उपजावे एवा काम करनारी बे, अने सुबुझि राधिका जे , तेतो अलख ना यकनेज थाराधे . अने एज माहारो श्रेष्ट इष्ट नायक , अने बोजा सर्व पर बे; एवो नेद जाणे जे ॥२॥ हवे कुबुकि अने कुब्जानुं एकसरखं वर्णन करे:- अथ कुबुद्धि यथाः॥सवैया इकतीसाः॥-कुटिल कुरूप अंग लगी है पराए संग, अपनो प्रवान करि श्रापुहि विकाई है; गहे गति अंधकीसी सकती कमंधकीसी, बंधको बढाज करे धंध हीमें धाई है; रांडकीसी रीति लिए, मांग कीसी मतवारी, सांम ज्यों सुबंद डोले नांमकीसी जाई है। घरको न जाने नेद करे पराधिन खेद, याते ऽर्बुकि दासी कुत्र जा कदाई है ॥२३॥ अर्थः- जे कुबुझि ते मायाथी कुटील , तेज कुब्जा कुरूप अंग वाली, अने कुबुकि पारका संगमां लागी रहे, तेम कुब्जा पण एवीजे. कुबुकि पोताना श्रशुद्ध प्रमाण वडे पोतेज परवश थई, श्रने कुब्जा पण तेम वेचाश्वे. कबंध एटले मस्तक विना लडाई करे तेनी शक्ति बेफाम होपडे, ते आंधलानी माफक गति लई डोलतो फिरे तेम कुबुकि ने कुब्जापण माथा विनानी फिरे अने पुर्बुकि ते कर्मना बं धने वधारेजे, ने धंध के राग द्वेष विग्रहमा दोमेने, तेम दासी पण पारका घर धं धामा दोडती फरेजे. कुबुधि पोताना नायकने श्रोलखती नथी, तेथी रांग जेवी रीती राखे, तेम दासीपण नायकविना रांडनी रीते. वली सोहागननी रीते मतवारी थ की फरे. जेम सांढ जनावर स्वबंदे मोलेडे, श्रने नांडनी डोकरी लाज विनानी हो यजे, तेवी ए कुब्जा दासी बे. जेम कुबुकि पोताना घरनो नेद जे ज्ञानादिक वित्त ते जाणे नही, तेम दासी पण घरनो नेद जाणे नही, ने पराधीन थकी खेद कस्या करे माटे फुर्बुद्धिरूप दासी ते कुब्जा दासी सरखी ॥२३॥ हवे सुबुद्धि श्रने राधिका ए बेनुं एक स्वरूप कही देखामेजेः-अथ सुबुद्धि यथाः ॥सवैया इकतीसाः॥- रूपकी रसीली चम कुलफकी कीली सीली, सुधाके समुख कीली सीखी सुखदाई है। प्राची शान नानकी थजाची है निदानकी, सुराची नरवाची गेर साची ठकुराई है; धामकी खबर दार, रामकी रमन हार, राधा रस पंथ निमें ग्रंथनि मेगाई है; संतनिकी मानी निरवानी नूरकी निसानी याते सदबुझि रानी रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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