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________________ ११० प्रकरणरत्नाकर जाग पड़ेलो. करता है सर्वथा प्रकार करता न होइ कब ही; तैसे जिनमति गुरु मुख एक पक्ष सुन, याही जति मानै सो एकंत तजो बही, जोलों डुरमति तौलो करमको कर ता है, सुमती सदा करतार कह्यो सब ही; जाके घट झायक सुनाउ जग्यो जब ही सो, सोतो जग जालसो निरालो जयो तबही ॥ ७७ ॥ अर्थः- मिथ्यात्वमां मग्न अजाण थको चेतन कर्त्ता बे. अने जोगता पण बे ने समकिति जीव निश्चयथी कर्त्ता पण नयी छाने जोक्ता पण नथी ॥ ७६ ॥ जेम सांख्यमति पोताना मतमां एवी प्ररूपणा करेले के, जे अलरूप बे ते स या कर्त्ता बे, पण क्यारे कर्त्ता थतो नथी, ने सत्व रज तम गुण प्रकृति कर्त्ता बे, एरीते जे सांख्यमतिवाला कहे बे, तेम कोई जिनमती पण कोई गुरुना मुखश्री निश्चय नयनो एक पक्ष सांजलीने एमज माने, एटले जीवने कर्त्ता माने बे. पण श्री जिनेश्वरना मतमां स्याद्वाद पक्ष बे. ते एवो ठराव बे के ज्यां सुधी दुष्ट बुद्धि मि यामती श्रहं बुद्धिमां बे, त्यां सुधी जीव कर्मनो कर्त्ता छे; श्रने सुमति श्रवेथी सदा कर्त्ता बे, जेवो बे तेवोज कर्त्ता कह्यो, जेना घटमां पोतानो झायक स्वजाव ज्यारे जाग्यो ते वखतथीज ते जगजालथी निरालो थइ, तेणे अर्ध पुल पराव मां संसार लावी मुक्यो ॥ ७७ ॥ हवे एकांत वादी बौधमती नि बुद्धिनुं वर्णन करे :- अथ बौध मति वर्णनं ॥ दोहरा ॥ - बोध बिनय वादी कहै, बिनु जंगुर तनुमांहि; प्रथम समे जो जीव है, डुतिय समे सो नांहि ॥ ७८ ॥ ताते मेरे मतविषे, करे करमजो कोइ सो न जोग वे सरवथा, और जोगता होइ ॥ ७९ ॥ ते :- बौध क्षणिक वादी बे, ते एवं कहे बे के शरीरमां रेहेनारो जे पदार्थ बे जंगुर वे एटले प्रथम समयमा जे जीव पदार्थ शरीरने विषे बे, ते बीजा स मां न पामिये, एथी सर्व कणनंगुर बे ॥ ७८ ॥ वली बौध कहे बे के मारा मनमां एवी श्रद्धा तरी बे, के जे कोई कर्म करेबे, ते तो कर्मना फलनो जोक्ता नथी. दण जंगुर पणाने लीधे बीजोज जोक्ता थाय बे ॥ ७९ ॥ दवे एकांत वादी बौधमतीना खंगननो उपदेश करेढेः - अथ बौध मतखंमन उपदेश: ॥ दोहा ॥ - यह एकंत मिथ्यात पष, डूरि करनके काज; चिद विलास श्रविचल कथा, जा श्री जिनराज ॥ ८० ॥ बालायन काढू पुरुष देख्यो पुर कइ कोश; तरुन जये फिरिके लख्यो, कहे नगर यह सोइ ॥ ८१ ॥ जो डुडु पनमे एक थो, तो तिन्हि सुमिरन कीय; और पुरुषको अनुजव्यो, और न जाने जीय. ॥८॥ जबयद वचन प्रगट सुन्यो, सुन्यो जैनमत शुद्ध; तब इकांत वादी पुरुष, जैन जयो प्रति बुद्ध ॥ ८३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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