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________________ श्रीसमयसारनाटक. ១០១ अर्थः-जेम को हृदय अंधपुरुष विकल मिथ्यात्वधारीने हैयामां विकल्प उपजावे, ते सर्व जग बे, ते क्रियावादीनो एकांत पद ग्रहीने आत्माने कर्त्ता मानीने अधोमु ख के नीची गतिने पकडी रह्यो, एवो जे जिनमती ले ते नाव चारित्रविना अने अव्य चारित्रयुक्त करणी करे, ने क्रिया करण एटले शुन क्रियानो कर्त्ता पोते के हेवायचे, ते मुक्तिने वांडे तोपण मूढमतिले; नवनो पार समकित विना पामतो नथी. ॥५॥ ॥ श्रने जीवनो अंक के चिन्ह चेतना जाणवी; थने पुजल तथा कर्म ए बे जने जम जाणवां. चेतन अने अचेतन बेज एक देत्रावगाही एटले एक देत्रवासी बे, तथापि कोई कोईथी मले एवां नथी. ॥ ६० ॥ जे पदार्थ डे ते पोतपोताना नावनी क्रिया सहित रहे बे; जेमा व्यापी रहे ते वस्तुने व्याप्य कहीये श्रने व्यापी रहे नार पदार्थने व्यापक कहीये तेथी पुजल व्याप्यमां जीवनुं व्यापकपणुं नथी, माटे पौगलिक कर्मनो कर्त्ता जीव क्यांथी थाय अर्थात् न ज थाय. ॥१॥ हवे व्यवहारमा जे रीते जीवनुं कर्त्तापणुं ठरेले ते जणावेजेः-श्रथ कर्ता कथन: ॥ सवैया श्कतीसाः- जीव अरु पुजल करम रहे एक खेत, जद्यपि तथापि सत्ता न्यारी न्यारी कही है; लबन सरूप गुन परजे प्रकृति नेद, मुहमें अनादिहीकी छ विधा रही है। एते परि निन्नता ननासे जीव करमकी, जौलों मिथ्या जाउ तोलों ओंधी वाउ वही है; ज्ञानके उदोत होत ऐसी सूधी दृष्टि जई, जीव कर्म पिंको अं करतार सही है. ॥ ६॥ दोहराः॥- एक वस्तु जेसी जु दे, तासों मिले न थान, जीव श्रकर्ता करमको, यह अनुनो परवान. ॥३॥ अर्थः- जेम श्राकाश प्रदेशमा पुद्गल कर्म अवगाहि रहे बे; तेज श्राकाश प्रदेशमां जीव प्रदेश पण अवगाहि रहे जे. एम जीव अने पुल एक देवना वासी, तथापि चेतननी सत्ता अने जडनी सत्ता ए बे जुदी बे. अनादि कालनी लक्षण ने दवडे, खरूप नेदवडे, गुणपर्यायवडे ने प्रकृति नेदवझे ए बेजनेविषे विविधता चाली यावे. तेम बतां लक्षण प्रमुखनी जिन्नता मिथ्यात्व नावने सीधे जीव थने कर्मनी ज्यां सुधी नासे नही, त्यां सुधी उधोवायु वहे डे एटले जीवने कर्त्ता मानीये .ये. अने झाननो उद्योत थवाथी सम्यक्त्वनी एवी शुभता थई के तेथी कर्म पिंडनो अकर्ता जीव सही थयो , एम जाएयु ॥६॥ जे वस्तु जेवीरीते ते साथे थानके बीजा खरूप वाली वस्तु मलती नथी; एकमेक थती नथी; एथी जीव कर्मनो अकर्ता जे.ए अर्थ अनुजव प्रमाणधी समजाय ॥ ६३ ॥ हवे मूढ जीव कर्मनो कर्त्ता मानी लेय ले ते कहे बेः-अथ मूढकायहकथन:॥ चोपाई॥- जेजुरमती विकल अज्ञानी; जिन्दि सुरीति पररीति न जानी; मा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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