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________________ श्री समयसारनाटक. ए७३ जाणे; (एमां अधर पगवमेकरी उत्प्रेदालंकार जाणवो.) अने हश्यामां जेथी उत्पात उपजे एवीज करणीनो विचार करे. अने था संसाररूप समुजविषे कर्मरूप, कस्लोलोना धकाये करी चारे गतिमां मामामोल करतो फरेने; जेम वंटोलिया वायुमां श्रावीगएवं पानडुं श्राकाशमां ऊमीने नम्यां करेले, पण कोई ठेकाणे स्थिरथई र हेतुं नथी; तेवीज एनी अवस्था थई रहीजे. जेनी बाती रागद्वेषवडे तप्त थई रेहे; ते तापे करी काली एटले माया तेने राखवाश्री कुटिल थर रहे. श्रने कुबाती एटले जे माठी वातोनुंज चितवनकरी रहेने, तथा पापेकरी नरेली माटे नारी जा णवी एवी जेनी बगती बे, एवो ब्रह्मघाती एटले श्रात्मघातनो करनार मिथ्यात्वी जीव महापातकयुक्त ॥ए॥ ॥दोहराः॥-वंदो शिव अवगाहना, थरु वंदों शिवपंथ, जसु प्रसाद नाषा करो, नाटक नामे गरंथ. ॥१०॥ अर्थः-जिहां सिद्धनो अवगाह थई रह्यो, ते क्षेत्रने हुँ वंदन करंटुं, अने ज्ञान दर्शन चारित्र ए मोदनो पंथके मार्ग , तेने ढुं वंदन करुंडं. ए मंगलाचरण करी हवे पोतानुं प्रयोजन कहेजेः-जेना प्रसाद थकी समयसार नाटक ग्रंथ संस्कृतमा हतो ते प्राकृत नाषारूप करंबुं. ए प्रयोजन कह्यु.॥ १० ॥ हवे था ग्रंथना अधिकारी बनारसीदास पोतेज बे; अने एमां कहेवा लायक पो ता, आत्मप्रव्य तेनुं वर्णन करेजेः-कविवर्णनं. ॥सवैया तेईसाः॥-चेतनरूप अरूप श्रमूरति सिक समान सदा पद मेरो: मोहम हातम आतम अंग कियो परसंग महातम घेरो; ज्ञानकला उपजी अब मोहि कहों गुननाटक आगम केरो, जासु प्रसाद सधै शिवमारग वेग मिटे घटवास वसेरो॥१९॥ अर्थः-बाह्यात्मामां अंतरात्माने अने अंतरात्मामां परमात्माना वरूपने जोईये, ए मारो निश्चयरूप पद कहेवा योग्य थाय. ते चेतनरूपी अनुपम श्रमूर्त्तिक सिझ स मान बे. जो ते निश्चयरूप पद एवं ने तो पड़ी ते प्रगट केम जाणातुं नथी? तेनो उत्तर एम डे के, मोहकर्मनुं कोई एहवं महात्म्य , ते प्रसंगयी आत्मअंगके श्रात्म प्रदेशनेविषे महाअंधकारनो घेरो तेथी प्रगट लखातुंनथी. हमणा कोई ज्ञान कला मुऊने उपनी ले ते कलानो अंश प्रगट थयो. तेथी नाटक सिझांत गुणनुं व्याख्यान करुंडं, जे श्रागमना प्रसादवडे मोदमार्ग सिझ थाय अने जलदीथी शरीरमां वास वसवानुं मटी जाय, एटलेशशरीरपणुं सिफथाय. ॥ ११ ॥ हवे था ग्रंथनुं गौरवपणुं बतावीने कविराज पोतानी बुद्धिन मंदपणुं देखाडी ल. घुता जपावे :- लघुता वर्णन: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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