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________________ प्रकरणरत्नाकर नाग पहेलो. अर्थः- जे बुध के ज्ञानी बे, ते राणा के राजा जे पातसाहन खांग खेतो थको रहे जे. जेम राजा पोताना यात्मानुं साधन करे; अने पोताना मंगलनो साज राखेपोताना थाणाने चीन्हे के नीचेबानी राखे, दाना राखे पण नादानी नदी राखे, ए चारे उपाय वडे नाना रंग करे, खाना जंगी के० लमाईनेविषे जोका थई रहे, तेम ज्ञानी पुरुष आत्म साधन करे, गुणगणा चिन्हे अने त्यागी थको कर्म निर्जराने विषे नाना प्रकारना रंग धारे, राग-द्वेष उर्जन साये लमी तेने हटावी देय, एवी रीते एक पदमां बे अर्थ थाय जे. जेम खुदार रेतरमीवमे लोढाने घसी नाखे बे, तेम जेटली जे टली माया वेली के० कर्मजाल तथा गजवेल ने क्रोध तेने मेधा के० सुबुद्धि ते रूप रेतरमी वडे घसी नाखे; श्रने फंदना कंदने खोदे. जेम लोधा के खेत खेतरनी ध रतीने कंद के मूलथी खोदी नाखे बे, तेम बाधा के० कर्मबंध तेथी हातालोरे के जुदाई करे, अने राधा के सुबुद्धि ते साथे नातो जोडे; बांदी के कुबुद्धि तेनो नांतो के संबंध ते तोडे. जेम सोनारूपानी चांदी शोधनार वस्तु उज्वल करेले, तेम जे जेने तेने जाणे, हेय जे गंडवा योग्य वस्तु अने उपादेय जे आदरवो योग्य वस्तु तेने पण नीके के ठीक जाणे, पण हैयाने राहीपाही के फुल समान पीकसमान जाणे जीनासथी खीलावेजे, ए रीते माही वातो ठरावे एवो सम्यक्त्व धारानो वेहेनार बोधा के० पंडितने ज्ञानी कहीये. ॥२॥ हवे ज्ञाताने चक्रवर्ति समान कही बतावेजेः- श्रथ ज्ञाता चक्रवर्ति समान कथन: ॥ सवैया इकतीसाः ॥- जिन्हिके दरव मिति साधत उ खंड थिति, विनसै विना व अरिपंकति पतन है; जिन्डिके जगतिको विधान पश्नो निधान त्रिगुनके नेदमान चौदह रतन है; जिन्दिके सुबुझि रानी चूरि महा मोह वज, पूरे मंगलीक जे जे मो खके जतन है; जिन्दिके प्रमान अंग जोहै चमू चतुरंग,तेई चक्रवर्ति तनुधरै पैतन है. ___ अर्थः- जेणे बए अव्य प्रमाण करी साध्या तेज जाणे बये खंड साधी लीधा अने जेना राग केषादि विनावदिशा वणस जाए तेज जाणिये शत्रुनी पंक्तिनुं पतन के नाश थयो, अने तेने नव प्रकारनी नक्तिनुं विधान के० करवं तेज तेने नव निधान बे, ज्ञान दर्शनने चारित्ररूप जे त्रण गुण , अने तेना क्षयोपशम माफक जे नेद उपजे, ते जेना चौद रतन प्रगटमान बे,अने जेम चक्रवर्तिने स्त्रीरत्न होय , ते तेनो उ खंड साधवानो राज्याभिषेक समय होय त्यारे वजरत्न हाथवडे चूरीने, मुख पागल मंगलीक पूरे तेम जेने सुबुधिरूप स्त्री रत्न ,ते महा मोहरूप वलिने चूरीने मोदन जतनने माटे मंगलीक पूरे डे, एटले मंगल कार्य करे; अने जे, प्रत्यक्ष प्रमाए. करीने अर्थनुं ग्रहण करे, तथा परोक्ष प्रमाणे करीने पण श्रर्थनेग्रहे, एवा जेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002165
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1903
Total Pages228
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size16 MB
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