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________________ ३८१ मांसाहार का निषेध करते हैं और इसे मानव के लिए अखाद्य बतलाते हैं । इनके विचार के अनुसार मांस भोजन सर्वथा त्याज्य है । इस पापाचार से मनुष्य को बचना चाहिए । २ हरिभद्र ने मधु', द्राक्षापनिक और प्रसव के पिलाने का निर्देश किया है । इनके व्यक्तिगत विचारों के अनुसार तो मदिरापान त्याज्य है । यह अनेक प्रकार के पापों का कारण है । हरिभद्र ने नाना प्रकार के रोगों की ओर इंगित भी किया है । मूर्छा, मारि तिमिर ', बधिरता महोदर सन्निपात " और उदरशूल " १- स, पृ० ५५३ । २ -- वही, पृ० ६५८ । ३ - - वही, पृ० ९५७ । ४ -- वही, पृ० २१ ५-- वही, पृ० ३१७ । ६- - वही, पृ० २६८ । ७ - वही १७ शिरोव्यथा राजघरानों का प्रचलित रोग था । समरकेतु को जब शिरोव्यथा बढ़ी तो प्रांखें टंग गयीं, श्वांस तेजी से चलने लगी । गुणसेन की शिरोव्यथा में वैद्यशास्त्र विशारद नाना प्रकार की चिकित्सा संहिताओं को देख रहे थे । नाना प्रकार की प्रौषधियां पोसी जा रही थीं तथा शिरोव्यथा को दूर करने के लिए विचित्र रत्नलेप लगाये जा रहे थे १८ 1 व्याधियों को शांत करने के लिए शान्ति अनुष्ठान भी सम्पन्न किये जाते थे । हरिभद्र ने एक आरोग्य मणिरत्न " ' का भी उल्लेख किया है, जो समस्त व्याधियों को दूर करने वाला था । एक ऐसी औषधि का भी उल्लेख श्राया है, जो घाव को तत्काल भर देती थी । २० - वही ६ - वही, पृ० ५८४ । १० - वही ११ वही १२ - वही १३- वही स्वास्थ्य और रोग का उल्लेख किया है तथा कतिपय रोगों की श्रौषधियों प्रधान रोग शिरोव्यथा, कुष्ठ ५, विसूचिका खसरे खुजली १२, मलव्याधि ३, जलोदर इन्होंने गिनाये हैं । १० ११ 7 १४ - वही, पृ० ५८५ १५ - वही, पृ० ६६३ । १६ -- वही, पृ० ५८४ | १७ - वही, पृ० ६६१ । १८--वही, , पृ० २१ । १६ -- वही, पृ० २० - वही, पृ० ६६१ । ५०२ । Jain Education International 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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