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________________ ३६३ कलह और युद्ध करते रहते हैं । समस्त अनर्थों की जड़ यह राज्य है । इसकी प्राप्ति की कामना से व्यक्ति उन्मत्त हो जाता है और नाना प्रकार के पापाचरण करता है । उसका हिताहित का विवेक लुप्त हो जाता हैं । उसे कार्य प्रकार्य का ज्ञान नहीं रहता है । राजा अपने शासन को सुव्यवस्थित करने के लिये मंत्रिमंडल, पुरोहित, युवराज, सामन्त, प्रधान सामन्त, महासामन्त एवं अन्य अधिकारियों का संघटन करता था । मंत्रिमंडल और मंत्रियों का निर्वाचन मंत्रिमंडल में एकाधिक मंत्री होते थे और इन सब में एक प्रधानमंत्री रहता था । प्रधानमंत्री को बृहस्पति और शुक्र के समान बुद्धि और नीति में प्रवीण होने पर भी “इंगियागारकुसल ण" " राजानों के संकेत और चेष्टाश्रों का ज्ञान होना आवश्यक होता था । राजा प्रत्येक कार्य के लिये मंत्रिमंडल की सलाह लेता था, उसी परामर्श के अनुसार राज्य व्यवस्था करता था। मंत्री वंशपरम्परा के अनुसार होते थे । पर मंत्रियों का कभीकभी निर्वाचन भी होता था । उज्जयिनी के नरेश जितशत्रु ने अपने मंत्रिमंडल में रोहक को लेने के लिये उसकी बुद्धिमानी की नाना तरह से परीक्षा ली थी। विभिन्न प्रकार की ऐसी समस्याएं उसे दी गई थीं, जिनका समाधान साधारण व्यक्ति कभी नहीं कर सकता था । उसने परीक्षा के लिये एक मेष भेजा और कहलवाया कि १५ दिनों तक इसको रखिये, पर इतने दिनों में इसका वजन न घटे और न बढ़े । यदि वजन घटबढ़ जायगा जो सभी गांव वालों को दंड दिया जायगा । रोहक ने अपनी बुद्धिमानी से उस मेष को ज्यों-का-त्यों रखा। उसी प्रकार और भी कई प्रकार की समस्याएं देकर उसकी परीक्षा की और पूर्ण बुद्धिमान समझकर राजा ने उसे प्रधान मंत्री का पद दिया । एक अन्य राजा के संबंध में भी एक उपाख्यान श्राया है, जिसे अपने मंत्रिमंडल में एक मंत्री की नियुक्ति करनी थी। इस स्थान के लिये उसे अत्यन्त बुद्धिमान व्यक्ति की श्रावश्यकता थी । अतः उसने घोषणा करायी कि नगर के तालाब के मध्यवर्ती स्तम्भ को जो व्यक्ति तट पर स्थित होकर ही बांध देगा, उसे पुरस्कार दिया जायगा । घोषणा के अनुसार अनेक व्यक्तियों ने स्तम्भ को बांधने का प्रयास किया, पर कोई भी सफल न हो सका। अन्त में एक बुद्धिमान व्यक्ति आया। उसने तालाब के किनारे पर एक स्थाणु-खूंटा गाड़ा और उसमें तालाब की लम्बाई के बराबर रस्सी बांधी। पश्चात् उस खूंट को घुमाकर उस रस्सी को घुमाने लगा, जिससे तालाब के मध्य का स्तम्भ सहज में ही बंध गया । मंत्रियों के निर्वाचन के संबंध में हरिभद्र ने अनेक उपाख्यान लिखे हैं । श्रतः स्पष्ट हैं कि मंत्री परम्परागत होने के साथ-साथ निर्वाचन और परीक्षण द्वारा भी नियुक्त किये जाते थे । राज्य का भार मंत्रियों के ऊपर अधिक रहता था । मंत्रियों में परस्पर शत्रुता भी रहती थी। हरिभद्र ने सुबन्धु और चाणक्य की शत्रुता का निर्देश किया है ।" प्रभावशाली बुद्धिमान् मंत्री राजा के ऊपर अपना पूर्ण प्रभुत्व रखता था। राजा सभी प्रकार के कार्य मंत्री और पुरोहित के परामर्श से ही सम्पन्न करता था । १ - स० पृ० १५१ । २ -- वही, पृ० १५१ । ३ - उप० गा० ५२-- ६६ । ४-वही, गाथा ९० । ५-- द० हा० पृ० १८२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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