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________________ ३५६ गंडकी नदी का संगम होता था। रामायण (१,४८) में भी मिथिला का उल्लेख प्राता है, यहां इस जनकपुरी भी कहा गया है । भगवान् महावीर ने यहां अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे। इस नगरी के चार दरवाजों पर चार बड़े बाजार थे। (३३) रत्नपुर--इस नगर की स्थिति कौशल जनपद में थी। विविध तीर्थकल्प में धर्मनाथ की जन्मभूमि रत्नपुर में मानी गयी है । यह नगर व्यापार की दृष्टि से बहुत समृद्धिशाली था। (३४) रथनूपुर-चक्रवालपुर--हरिभद्र के अनुसार यह विजयाई को दक्षिण श्रेणी का एक नगर है । दक्षिण श्रेणी के ५० नगरों में से यह बाइसवां नगर पड़ता है। (३५) रथनीपुर'- हरिभद्र के निर्देशानुसार यह भरत क्षेत्र का एक नगर है। इसको स्थिति मिर्जापुर के प्रागे और इलाहाबाद के पहले होनी चाहिये। (३६) राजपुर--विजयार्द्ध में राजपुर का निर्देश हरिभद्र ने किया है, पर यह वर्तमान में सौराष्ट्र में अवस्त्रित एक नगर है। (३७) लक्ष्मीनिलय--प्रासाम में इस नगर की स्थिति रही होगी। (३८) वर्धनापुर-उत्तरापथ में इस नगर का निर्देश हरिभद्र ने किया है । वर्तमान में यह कन्नौज के प्रासपास स्थित कोई नगर है । (३६) वसन्तपुर-राजगृह के पास एक नगर है । वसन्तपुर का संस्कृत-साहित्य में भी उल्लेख पाया है। (४०) वाराणसी--काशी देश की प्रधान नगरी है। वरुणा और असि नाम की दो नदियों के बीच में अवस्थित होने से यह वाराणसी कही जाती है । यह गंगा के तट पर अवस्थित है । यह पार्श्वनाथ का जन्मस्थान है । बुद्ध और महावीर के समय वाराणसी बहुत ही उन्नत दशा में थी। यह नगरी आज भी इसी नाम से प्रसिद्ध है । (४१) विलासपुर-यह विद्याधर नगर है । हरिभद्र ने इसकी स्थिति विजयार्द्ध में मानी है। पर यथार्थ में इसकी स्थिति मालवा और गुजरात के मध्य में होनी चाहिये। मध्य प्रदेश का प्रसिद्ध विलासपुर भी सम्भवतः हरिभद्र द्वारा उल्लिखित विलासपुर हो सकता (४२) विशाखवर्द्धन-कादम्बरी अटवी में विशाखवर्द्धन नगर की स्थिति बतलायी गयी है। बिहार में आधुनिक भागलपुर और मुंगेर के बीच इसकी स्थिति होनी चाहिये। (४३) विशाला"--अवन्तिदेश की प्रधान नगरी का नाम है । - - - - - - - - - - - -- - - - १--स० पृ० १२० । २--वही, पृ० ४५५ । ३-.-वही, पृ० १२५ । ४-~वही, पृ० १०३ । ५--- वही, पृ० १६८। ६--वही, पृ० ७११ । ७--वही, पृ० ११ । ८--वही, पृ० ८४५। E--स. वह, ४१२ । १०--वही, पृ० ६७३ । ११-वही, पृ० २८९, ३१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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