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________________ ३५७ है, उनमें चम्पा भारत की सर्वप्रथम नगरी बतायी गयी है। चम्पा का वर्णन करते हुए प्रोपपातिक सूत्र (१) में बताया गया है कि यह नगरी अत्यन्त समृद्धशाली थी और वहां के निवासी सम्पन्न थे। ईख, जौ, चावल प्रादि धान्यों की उत्पत्ति बहुत होती थी। वर्तमान में चम्पानगरी भागलपर के एक किनारे स्थित है। इसका स्टेशन नाथनगर है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा-विवरण में चम्पा को समृद्धि का जिक्र किया है। (२०) जयपुर--हरिभद्र ने इस नगर को प्रवरविदेह में बतलाया है। इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि "प्रवरविदहे खत्ते अपरिमिय गुणनिहाणं सियसपुरवाराणुगारि उज्जाणारामभूसियं समत्थमेइणितिलयभूयं जयउरं नाम नयरं ति"--अपरविदेह क्षेत्र में अपरिमित गुणों का भाण्डार इन्द्रपुरी का अनुकरण करने वाला उद्यान और आरामों से विभूषित समस्त पृथ्वी का तिलकस्वरूप जयपुर नाम का नगर है । इस वर्णन से भी ज्ञात होता है कि उक्त जयपुर बहुत ही रमणीय रह होगा। हमारा अनुमान है कि यह जयपुर वर्तमान जयपुर से भिन्न है। (२१) टंकनपुर--हमारा अनुमान है कि टक्कनपुर होना चाहिये। टक्कनपुर के स्थल पर टंकनपुर लिखा गया है । इसकी स्थिति विपाशा और सिन्धु नदी के मध्य भाग का टक्क या वाहीक कहा जाता था। शाकल का स्यालकोट टक्क देश की राजधानी थी। इसमें मद्र और प्रारट्ट देश भी सम्मिलित थे। राजतरंगिणी में टक्क की स्थिति चन्द्रभागा या चिनाव के तट पर आती है । कुवलयमाला के अनुसार वाहीक या पंचनवदेश टक्क कहा जाता था। (२२) थानेश्वर'--प्राचीन कुरुक्षेत्र का यह एक भाग था। कुरुक्षेत्र में पानीपत, सोनपत और थानेश्वर तक का भूभाग शामिल था। इसका एक अन्य नाम स्थानुतीर्थ भी मिलता है । सातवीं शताब्दी में इस सम्राट हर्ष की राजधानी होने का गौरव प्राप्त हुआ है । महाकवि बाणभट्ट ने इस नगर का बड़ा हृदयग्राह्य वणन किया है। वहां मुनियों के तपोवन, वेश्याओं के कामायतन, लासकों की संगीतशालाएं, विद्यार्थियों के गुरुकुल, विदग्धों की विट् गोष्ठियां, चारणों के महोत्सव समाज थे। शस्त्रोपजीवी, गायक, विद्यार्थी, शिल्पी, व्यापारी, बन्दी, बौद्ध भिक्षु प्रादि सब प्रकार के लोग वहां थे। थानेश्वर के इलाके में सातवीं शती में शिवपूजा का घर-घर प्रचार था । हर्षचरित में थानेश्वर में होनेवाली उपज, पशुसम्पत्ति, धनसम्पत्ति एवं उसके सांस्कृतिक वैभव का सुन्दर वर्णन किया है । इसमें सन्देह नहीं कि सातवीं-आठवीं शताब्दी के साहित्य में इस नगर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। - (२३) दन्तपुर-महाभारत के अनुसार दन्तपुर कलिंग को राजधानी था। इसे वन्तकूर भी कहा जाता है। (२४) पाटलापथ:--इस नगर की स्थिति का परिज्ञान विविध तीर्थकल्प से होता है । इस ग्रन्थ में पाटला में नेमिनाथ जिनालय के होने का उल्लेख है। हमारा अनुमान है कि सौराष्ट्र में कहीं इस नगर की स्थिति रही होगी। - १ -स , पृ०७५। २--वही, पृ० १७२ । ३--वही, पृ० १८१ । ४- -डा. वासुदेव शरण अग्रवाल द्वारा सम्पादित हर्ष चरित एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० ५५ । ५--स०, पृ० ५२६ । ६--वही, प.० ७१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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