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________________ ३५४ कामरूप को चीन और वर्तमान चीन को महाचीन कहा जाता था । कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कामरूप के लिए चीन शब्द का प्रयोग किया गया है और कामरूप में "सुवर्णकुण्ड" नामक ग्राम का उल्लेख भी मिलता है। महाभारत (सभापर्व ३४--४१) में चीन शब्द का प्रयोग इसी देश के लिए किया गया प्रतीत होता है। इसमें सन्दह नहीं कि प्राचीन कामरूप अत्यन्त विस्तृत भारत का भूभाग था, जो चीन तक व्याप्त था । ___काशीदेश-इस जनपद में बनारस, मिर्जापुर, जौनपुर, आजमगढ़ और गाजीपुर जिले का भूभाग लिया जाता था। यह समृद्धशाली जनपद माना जाता रहा है । पूर्वदेश'-पूर्वदेश के अन्तर्गत बनारस से आसाम और वर्मा तक का वहत् भूभाग प्राता है। इसमें मुख्यतः पूर्वीय भारत शामिल था। ___सौराष्ट्र'-भारत को पश्चिम दिशा का प्रसिद्ध काठियावाड़ जनपद और गुजरात प्रदेश का कुछ भाग सौराष्ट्र के नाम से कहा जाता है । वलभी कुछ दिनों तक यहां की राजधानी रही है । द्वारिका को इस प्रदेश की राजधानी प्राप्त करने का सौभाग्य महाभारत के समय में था। (आ) नगर हरिभद्र ने लगभग ६० नगरों का उल्लेख किया है। यहां उनके नगरों का संक्षिप्त विवेचन किया जाता है । (१) अचलपुर --ब्रह्मपुर के पास प्रामीर देश का एक नगर, इसमें रेवती नक्षत्राचार्य के शिष्यों ने दीक्षा ली थी। यह व्यापारिक नगर था, इसे उत्तरापथ का प्रधान नगर कहा है। (२) अमरपुर--ब्रह्मदेश की प्राचीन राजधानी । यह ऐरावत नदी के पूर्व तट पर अवस्थित है। ब्रह्मदेश में यह रीति प्रचलित रही है कि जब कोई नया राजा होता है, तब वह पूर्व राजधानी को त्यागकर किसी दूसरे नगर में राजधानी स्थापित करता था । वर्तमान अमरावती अमरपुर से भिन्न है। हमें आधुनिक प्रावा ही प्राचीन अमरपुर प्रतीत होता है। (३) अयोध्या-विविध तीर्थकल्प में इस नगरी के नाम कोसला, विनीता, इक्ष्वाकुभूमि और रामपुरी आये हैं । अयोध्या का एक प्राचीन नाम साकेत भी है । अयोध्या सरयू नदी के किनारे अवस्थित है । उस समय में यह नगरी धनधान्य से परिपूर्ण थीं, सड़के यहां की सुन्दर थीं। (४) प्रानन्दपुर-आनन्दपुर का दूसरा नाम निशीथ में प्रबकत्थली भी पाया है। (गा० ३३४४ चू०) गुजरात के अन्तर्गत यह एक प्राचीन नगर है। वर्तमान में यह उत्तर गुजरात में बड़नगर के नाम से प्रसिद्ध है। १-स०, पृ० ८४५। २--वही, पृ० ४६६ । ३-द० हा० पृ० ७०। ४---स० पृ० ५०६ । ५ -वही, पृ० १७१। ६--वही पृ० ७३१ । ७--वही, पृ० ४००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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