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________________ ३५१ पद्मावती'--विन्ध्यशैलमाला के मध्य में यह अरण्य अवस्थित था । इस स्थान पर पारा और सिन्धु नदियां प्रवाहित होती है । इस अरण्य में पहाड़ी नदियों के रूप में नून नदी तथा महवार नदियां प्रवाहित होती थीं। वर्तमान नरबर नाम के स्थान के निकट यह अटवी रही होगी। वृक्ष--हरिभद्र ने वन और उपवनों में जिन वृक्षों का वर्णन किया है, उन्हें तीन भागों में विभक्त कर सकते हैं (१) प्रसिद्ध फल वृक्ष, (२) शोभावृक्ष और (३) पुष्पपादप एवं लता। प्रसिद्ध फल वृक्षों में आम्र का वर्णन सर्वप्रमुख है। इसका उल्लेख सहकार, आम्र, माकन्द, आदि नामों से हुप्रा.है । आम के पल्लव और मंजर का प्रचुर उपयोग हरिभद्र के पात्रों ने किया है । इसकी मंजर वसन्तसेना की दूती मानी गई है और प्रणयी के लिए संकेतवाहिनी। मैदान का शायद ही कोई ऐसा गांव या नगर होगा, जिसमें अमराइयां न हों। हरिभद्र ने प्रत्येक वन-उपवन में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। फल-वक्षों में कदली (केला),' पनस (कटहल), जम्बू (जामुन), नारंग'पादप, नारि केल', कदम्ब", न्यग्रोध, बड़सर्ज, सहजन, जम्बुक', जम्मीरीनीबू, पूगफली और कंकोल १५ एवं निम्ब १६ का निर्देश हरिभद्र ने किया है। शोभावक्ष ऐसे वृक्षों को कहा जाता है, जो सौन्दर्य की वृद्धि के लिए लगाये जाते है। शोभा-वृक्षों में अशोक का प्रमुख स्थान है, अशोक के कई प्रकार हैं, जिसमें रक्ताशोक सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। वकुल, साल, तमाल,१९ तातालि, तिलक,२५ १--स०, १० २८५। २--वही, प०१७ । ३--वही, पृ० १३५ । ४--वही, पृ० ५१० । ५--वही, पृ० ४०५ । ६-वही, पृ० ४०५। ७-वही, पृ० १३५ । ८--वही, पृ० १६ । ६-वही, पृ० १७१। १०--वही, पृ० १३५ । ११--वही, पृ० १३५ । १२--वही, पृ० १३५ । १३--वही, पृ० १३५ । १४--वही, पृ० ८८ । १५--वही, पृ० ८८ । १६-वही, पृ० १३५ तथा ४२५ । १७--वही, पृ० १३५ । १८--वही, पृ० १३५ । १६--वही, पृ० १३५ । २०--वही, पृ० १३५ ।। २१--वही, पृ० १३५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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