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________________ २८१ नायिका को पुनः प्राप्त करता है। इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र ने श्रावस्ती के गन्धर्वदत्त का विवाह इन्द्रदत्त नामक श्रेष्ठ की पुत्री वासवदत्ता के साथ अनुरागवश कराया हूँ । विवाह के उपरान्त कथासूत्र जैसे ही लक्ष्य की ओर बढ़ता है कि नृपति कुपित होकर वासवदत्ता का हरण कर लेता है । कथासूत्र उलझ जाता है । नायिका विछोह को सहन करने में असमर्थ है । कथाकार कथासूत्र को सुलझाने का पुनः प्रयास करता है । गन्धर्वदत्त राजा को उपहार देकर प्रसन्न करता है और कंठगत प्राण वासवदत्ता को प्राप्त कर कथा को सांप की तरह गति और फिसलन के साथ आगे बढ़ाता है । ( ६ ) प्रेमाधिक्य के कारण वियोग की स्थिति में आत्महत्या की विफल चष्टा नायक या नायिका जब एक-दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, तो वे प्रेमाधिवय के कारण आत्महत्या करने की विफल चेष्टा करते हैं। इस कथानक रूढ़ि का प्रयोग हरिभद्र न समराइच्चकहा में नायक के बिछुड़ने पर नायिका द्वारा और नायिका के बिछुड़ने पर नायक द्वारा कराया है। सप्तम भव में शांतिमती सेनकुमार के न मिलने पर अशोक वृक्ष की डाल से लटक कर आत्महत्या की चेष्टा करती है । वह वन देवता को सम्बोधन करती हुई कहती है-- "वन देवता ! मैंने आर्यपुत्र के अतिरिक्त अन्य किसी का मन से भी चिन्तन नहीं किया है, अतः आर्यपुत्र मुझे अगले भव में भी पति के रूप में प्राप्त हों । इस प्रकार कहकर वह फांसी लगाती हैं, पर गांठ खुल जाने से वह गिर जाती है। और मूर्छित हो जाती है। पंचम भव की कथा में सनत्कुमार विलासवती के विछोह से घबड़ाकर आत्महत्या करना चाहता है, पर विद्याधर के सहयोग से वह अपने संकल्प से विरत हो जाता है । इस प्रकार हरिभद्र ने इस कथानक रूढ़ि द्वारा निम्न कथातत्त्वों की सिद्धि की है। --- ( १ ) आन्तरिक विचार धाराओं को यथातथ्य रूप देना । (२) भावों को आत्मनिष्ठ न बनाकर संप्रेषणीय बनाना । ( ३ ) कथा को नयी दिशा की ओर मोड़ना । ( ४ ) घटनाओं को सक्रिय और सजीव बनाना । (५) कथा में गति धर्म की तीव्रता । ( ७ ) अन्य के द्वारा प्रिया का प्रसादन करते देख प्रिया का स्मरण और प्रभाव । मनुष्य की कुछ भावनाएँ अन्य व्यक्तियों को कार्य करते देखकर उबुद्ध होती हैं । जब कोई अपनी प्रिया के पास एकान्त में प्रेमसंलाप करता है या रूठी हुई मानिनी नायिका का प्रसादन करता है, तो देखने वाले व्यक्ति को प्रिया का स्मरण हो आना स्वाभाविक है । यह स्मरण कथानक रूढ़ि बन गया है। हरिभद्र ने इसका प्रयोग छठवें भव की कथा में किया है । रेविल को नागलता मण्डप में अपनी कुपित प्रिया को प्रसन्न करते देख धरण को लक्ष्मी का स्मरण हो आता है और उसके निन्द्य कार्यों का चिन्तन कर उससे और अधिक विरक्ति हो जाती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002143
Book TitleHaribhadra ke Prakrit Katha Sahitya ka Aalochanatmak Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1965
Total Pages462
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size22 MB
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